उत्तर प्रदेश     वाराणसी     भेरोनाथ


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

भेरोनाथ समूह के बारे में:-

भेरोनाथ समूह उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी जिला के अन्‍तर्गत आता है।

भेरोनाथ समूह 300 से अधिक शिल्‍पकारों और 20 एसएचजी सहित सक्षम कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है। यह संघटन दिन-प्रतिदिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है।

आभूषण:-

स्‍वर्ण, चाँदी और सम्‍बद्ध मूल्‍यवान रत्‍नों के अत्‍यधिक मूल्‍य को देखते हुए हड्डियों और सींगों से निर्मित आभूषण न केवल उत्तरप्रदेश बल्कि विदेश में भी लोकप्रियता प्राप्‍त कर रहे हैं। हड्डी आभूषणों के कलाकार भूवेश कुमार कहते हैं, "पहले इतनी माँग नहीं थी परंतु अब हमारे पास निर्यात के आदेश हैं और निर्यात आदेशें की माँग पूरा करने के लिए हम अपने स्‍तर पर बेहतर कार्य कर रहे हैं"। इन देशी शिल्‍पकारों नें हड्डियों की वस्‍तुओं की किस्‍में और सहायक सामग्री तैयार करने का कौशल अपने पूर्वजों से विरासत में प्राप्‍त किया है।

राजीव गुप्‍ता, मुरादाबाद के हड्डी आभूषण निर्यातक कहते हैं, " स्‍वतंत्रता से पहले लोग हड्डियों और सींगों से कंघियां बनाते थे। उस समय कलाकार केवल उत्‍कीर्ण कार्य करते थे और इस कला की विरासत अगली पीढि़यों को हस्‍तांतरित हुई"। हड्डियों की चूडि़यां विभिन्‍न व्‍यक्तिगत पसन्‍द और विकल्‍पों को पूरा करने के लिए विभिन्‍न रंगों और विन्‍यासों की विस्‍तृत श्रृंखला में आती हैं।

विभिन्‍न रंगों में उपलब्‍ध हड्डी आभूषणों की विदेशों में कालेज जाने वालों में माँग बनी रहती है। आभूषणों को विभिन्‍न रंगों और संयोजनों में रंगा जाता है जो विदेशी भूमि पर ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। मनोज, एक हड्डी आभूषण निर्माता कहते हैं, " पशुओं के सींगों और हड्डियों से निर्मित हमारे रंगीन आभूषणों की श्रृंखला से हमें अच्‍छा लाभ प्राप्‍त हुआ। किसी भी प्रकार के आभूषण हम तैयार करते हैं, हम सुगमता से इन्‍हें विभिन्‍न रंगतों में रंग देते हैं। विभिन्‍न रंग संयोजन अन्‍तर्राष्‍ट्रीय ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। वे यह आभूषण उनके परिधानों से मेल करने के लिए खरीदते हैं"।

कच्ची सामग्री:-

आभूषण वस्‍तुएं तैयार करने के लिए प्रयुक्‍त मौलिक कच्‍ची सामग्री है:-

मौलिक सामग्री :- शंख से वस्‍तुएं, लाख, शंख सीप, लौह एवं ताँबा चूडि़यां, चाँदी, पीतल, आधार धातु, पुष्‍प आभूषण, चाँदी, पीतल,स्‍वर्ण, खार या नवसागर, कोयला, मोम, केरोसीन लैम्‍प, एल्‍युमीनियम धातु, काष्‍ठ साँचा, हथौड़ी, मोगरी, छैनी, खुरचना, खुरचनी, तार काटने की कैंची, लौह और काँसे के डाई किए गोल मनके, प्रवाल मोती, सिल्‍क धागा, मनके, पॉलिश।

सजावटी सामग्री :- काँच के मनके, धातु मनके और काले मनके

रंगाई सामग्री :- सोडियम सल्‍फेट, फिटकरी लवण, सल्‍फ्युरिक अम्‍ल, रंग, गोंद, वार्निश, तामचीनी रंग

प्रक्रिया:-

आभूषण निर्मान प्रक्रिया में वर्तमान खोज में इन चरणों को सम्मिलित करते हुए विचार किया जा सकता है :

(a) कम्‍प्‍युटर से निर्मित चित्र का फोटोग्राफिक निगेटिव तैयार करना;

(b) एक सुदृड़ अध:स्‍तर आधारित फोटोपोलीमेराजेबल रेजिन परर निगेटिव को ढकना;

(c) अनावृत रेजिन को परांबैंगनी विकिरण द्वारा प्रदीप्‍त करना;

(d) अनपोलीमेराइज्‍ड रेजिन को धोवन सामग्री जैसे पानी का प्रयोग कर फोटोपोलीमर से हटाना, जिसका परिणाम ढलाई की जाने वाली वस्‍तु का त्रिआयामी आकार के रूप के समान उत्‍पन्‍न होना ;

(e) इसके परिणाम से अम्‍ललेखित तश्‍तरी को एक पात्र में रखना और उपकरण रेजिन को पात्र में भरना। जिसके द्वारा तैयार की जाने वाली आभूषण वस्‍तु की निगेटिव की प्रतिछाया धारक डाट तैयार होना ;

(f) उपकरण रेजिन डाट को आभूषण वस्‍तु साँचे में प्रविष्‍ट करना जिसमे खाली नलिकार होता है जो डाट को ग्रहण करने के परिणामस्‍वरूप एक पूर्ण आभूषण साँचा तैयार होता है ;

(g) पूर्ण किए गए साँचे को प्‍लास्टिक से भरना जिसके परिणामस्‍वरूप तैयार की जाने वाली आभूषण वस्‍तु का प्‍लास्टिक प्रतिरूप तैयार हो जाता है।

(h) प्‍लासिटक प्रतिरूप को "पिघले मोम" ढलाई प्रक्रिया में प्रयोग करते हुए एक अलग आभूषण वस्‍तु तैयार करना।

तकनीकियाँ:-

जालिकारूप एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा धातु में अपने आप उभार और गहराईयां बन जाती हैं, एक विशिष्‍ट संरचना उत्‍पन्न होती है। स्‍टर्लिंग चाँदी या रेटीक्‍युलेशन चाँदी के अनेक बार गलनाँक बिंदु से थोड़ा नीचे तक गर्म किया जाता है, तत्‍पश्‍चात् अंत में अधिक ऊष्‍मा दी जाती है जिसके कारण स्‍वच्‍छ चाँदी सतह पर आती है और ऐंठन होती है। संगलन की यह प्रक्रिया ऊष्‍मा द्वारा चाँदी और स्‍वर्ण को परस्पर संयोजित करती है और स्‍पर्श करती हुई सतह को पिघलने देती है और इस प्रकार संगलित हो जाती है। किसी सोल्‍डर का प्रयोग नहीं होता। जापानी में मोकुमिजेन, मोकुमि-जेन का अर्थ काष्‍ठ धातु कण है। स्‍टर्लिंग चाँदी और ताँबे या स्‍टर्लिंग चाँदी और 22 कैरेट स्‍वर्ण की वैकल्पिक परतें परस्‍पर जुड़ जाती हैं। संरचनाएं उभार या पृष्‍ठ की जाली द्वारा निर्मित होती हैं और संरचनाएं दर्शाने के लिए भरी जाती हैं। यादृच्छिक नमूना परतों में कठोर चाँदी आधार होती है। कोई भी दो वस्‍तुएं बिल्‍कुल एक समान नहीं होती हैं। एक आक्‍साइड परत द्वारा टिटेनियम पर टिटेनियम रंग उत्‍पन्न किया जा सकता है जब धातु को एक निश्चित वोल्‍टेज स्‍तर पर एनॉडीकृत किया जाता है। यह परतें प्रकाश को अलग-अलग परावर्तित करती हैं- एक प्रभाव जो नेत्रों तक रंगों के इंद्रधनुष के रूप में पहुँचता है। यह छदिमा एक समृद्ध रंगीन रूप है। शि‍बुइची, यह स्‍वचछ चाँदी और ताँबे से निर्मित एक मिश्रधातु है। इस धातु का प्रथम ज्ञात प्रयोग चीन में हेन साम्राज्‍य के दौरान था। कोरू यह विन्‍यास उन्‍नति और जीवन के परम्‍परागत माओरी प्रतीक से प्रेरित है। यह एक छोटे पौधे को चित्रित करती है। यह शांति, सद्भाव और नई शुरूआत को निरूपित करती है।

कैसे पहुँचें: -

वाराणसी कोलकाता से दिल्ली तक (राष्ट्रीय राजमार्ग) एनएच 2  पर, कन्याकुमारी तक एनएच 7 पर और गोरखपुर तक एनएच 29 पर वास्‍तव में देश के शेष भागों से सभी ऋतुओं में अच्छे वाहन चलाने योग्य सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है। कुछ महत्वपूर्ण सड़क दूरियां हैं :आगरा 565 किमी,इलाहाबाद128 किमी,भोपाल 791 किमी,बोधगया 240 किमी,कानपुर 330 किमी, खजूराहो 405 किमी, लखनऊ 286 किमी,पटना 246 किमी, सारनाथ 10 किमी, लुम्बिनी(नेपाल) 386 किमी, कुशी नगर 250 किमी (वाया गोरखपुर),यूपीएसआरटीसी बस अड्डा, शेरशाह सूरी मार्ग, गोलगड्डा बस अड्डा ।








उत्तर प्रदेश     वाराणसी     सामाजिक विकास संस्थान