राजस्थान     टोंक     देओली


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

 

देओली  समूह के बारे में

 

देओली  समूह राजस्थान राज्य के टोंक  जिले में पडता है।

 

देओली  समूह 262 से ज्यादा कारीगरो और 16 SHG बना पाये है जो मजबुत कार्यबल देता है। यह संघठन का संवेग दिन-प्रतिदिन बढ रहा है।

 

 

घास,पत्ते,नरकट और रेसा:

 

राफिया और मूंज(एसे नाम से हि स्थानिक रुप से जाने झाते है) अलग अलग शैली में तिनके और पत्ते के साथ विविध बास्केट,फर्नीचर,ट्रे और दिवाल के सुशोभन के लिए इस्तेमाल होता है।बरैली का केन्द्र बहुत हि मशहूर है अन्य़ केन्द्रो अल्हाबाद और वारानसि के साथ।

घास या रेसा मूंज,खेत की किनारी पे वाड के तौर पे पकाया जाता है।यह पारंपारिक उद्योग है और कौटुंबिक सदस्यो के द्रारा बहुत हि कम उम्र मे शीख लीया जाता है।

 

एक बार जब पौधा फसल के लिए तैय़ार हो जाए तब उसे जमीन के बहुत हि करीब से काट लिया जाता है और मेदान मे एक या दो दिन के लिए छोड दिया जाता है जब पत्ते गिर जाते है।कटे पौधो को बाद मे इकठ्ठे करके पानी मे डूबोया जाता है पौधे से रेसो को अलग करने के लिए।इस प्रक्रिया को सडन कहते है। इस तरह से अलग किये पटसन को सूखाया जाता है और अलग अलग आकारो में दिये जाते है।रेसो को धागे में बुने जाते है। कंइ बार धागो को चिथडा या वस्त्र बनाने के लिये बुना जाता है।साफ किया हुआ रेसा,धागा और चीथडे सभी का इस्तेमाल सुंदर कला उत्पादने जैसे की बेग, चिथडा, कार्पेट, हेन्गींग,फुटवेर,कोस्टर,आभूषण,शो पीस इत्यादि बनाने मे इस्तेमाल होता है।कुछ अच्छी कोटि के पटसन का फर्नीशींग सामग्री और ड्रेस के लिए इस्तेमाल होता है।

 

खजूर के  नाजुक पत्ते जिसकी पसली निकाली हुइ होती है और बादमें सूरज की धूप में सूखाया है उससे बनी चीजो मे सामिल है बेग,डिनर केस,और सुशोभित हाथोमे रखा जाये एसा मॊडा जानेवाला पंखा जिसकी 37 से 56 के बीच की ब्लेड होती है।ब्लेड कॊ एकदूसरे के साथ तांबे के तार से उस के उपर रखे छिद्र मे से जोड दिया जाता है और पंखे की तरह फैलाने के लिए एक साथ सीलाइ की जाती है।ब्लेड पे  फूलो की डिजाइन की चित्रकारी करने के द्रारा आकर्षक बनाया जाता है।दक्सिनी केराला में खजूर के पते और तने की बुनाइ का बढता हुआ व्यापार है इन दिनो मे बेग,हेट और सुट्केसीस भारतीय और आंतरराष्ट्रीय दोनो बजारो क्र लिये  बनाइ जाती है ।नरकट मजबुत-तने का घास है , खोखले तने वाला जो बांस के भांति दीखता है।यह मजबुत सामग्री है और नरकट चटाइयो का इस्तेमाल दिवाल और छ्त को बनान के लिये होता है।नरकट को पहले चिर दिया जाता है उसे चटाइ में सीधी बुनाइ मे बुना जाए उससे पहले।वो एक कोने से शुरू की जाती है और सिलवट या बुनाइ  विकर्ण रेखा मे की जाती है।बीच मे लंबी पट्टीयो को मोड दिया जाता है और अन्य पट्टी को तिरछा दाखिल किया जाता है जो बाद मे मोडी जाती है और आगे की पट्टी को फिर से तिरछा दाखिल किया जाता है और एसा होता रहता है।तिरछी पट्टीओ की चुनन चटाइ की किनारीया बनाती है।नरकट का बहुत हि मजबुत बास्केट बनाने के लिए भी इस्तेमाल होता है।

 

कच्ची सामग्री:-

 

तामिलनाडु के गांव खजूर ,नारीयेल,ताड,पल्मयरा के पेड से भरे हुए है।बास्केट और संबंधित उत्पादने बनाने के लिए खजूर कच्ची सामग्री का अहम संशाधन है।अन्य कच्ची सामग्री जैसे की बांस,बेंत, घास,रेसे और नरकट का भी बास्केट,छत,रस्सा,चट्टाइ और काफी अन्य चीजे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

 

प्रक्रिया:-

 

पटसन रेसा पटसन पौधे के तना और छाल (बाहरी चमडी) से मिलता है।रेसो को पहले सडन फेला के अलग किया जाता है।सडन कि प्रक्रिया में सामिल है पटसन के तनो की एक भारी बनाना और उनको कम,बह्ते पानी मे डूबोना।दो तरह की सडन की जाती है:तना और छाल ।सडन की प्रक्रिया के बाद पट्टी बनाना शुरू होता है।औरते और बच्चे सामान्य रुप से यह काम करते है।पट्टीया बनाने की प्रक्रिया में रेशेदार तत्व को खुरचा जाता है,बाद में कामदार जुट जाते है और पटसन तने से रेसो को निकालते है।पटसन बेगो का फेशन बेग और प्रमोशनल बेग बनाने के लिए इस्तेमाल होता है।पटसन का इको-फ्रेन्डली लक्सण इसको सामूहिक भेट देने की खातिर श्रेष्ठ बनाता है।

 

पटसन की फर्श आवरण के लिए बुनी हुइ और गुच्छेदार और ढेर कि हुइ कार्पेट का इस्तेमाल किया जाता है।पटसन चटाइया और 5/6 चौडाइ की  और अवरित लंबाइ की चटाइया भारत के दक्सिणी भाग में बडी आसानी से बुनी जाती है,मजबुत और फेन्सी रंगो मे और अलग अलग बुनाइयोमे जैसे की बौकले,पानामा,हेरींगबोन इत्यादि।पटसन चटाइ और गलीचा पावर लूम और हाथ के लूम दोनो से,बडी मात्रा मे केराला,भारत मे से बनाया जाता है।पारंपारीक शेतरंजी चटाइ घर के सजावट के लिए बहुत हि लोकप्रिय हो रहि है।पटसन बिना बुनाइ के और घटको का अन्डरले , लीनोलीयम,सबस्ट्रेट और सभी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।इस तरह पटसन सबसे ज्यादा वातावरणीय दोस्ती वाला रेसा है जो शुरु होता है बीज से और खत्म होता है रेसे मे,क्योंकि खतम हुए रेसो को एक से ज्यादा बार रीसाइक्ल किया जा सकता है।

 

तकनीकियाँ:-

 

व्यवाहारीक कोर्ष है आधुनिक तकनिक का परिचय कराना और कौशल्य को बढाना और कामदार को उसकी उत्पादकता और उसकी आमदनी बढाने के योग्य इस तरह बनाना की वो अपने जीवन की बुनियादी जरुरतो को पूरा कर शके और बहुत हि कम समय में गरीबाइ के चुंगल मे से बाहर आ शके।

 

कैसे पहुचे :-

 

वायुमार्ग द्वारा:-

 

यह शहर जयपुर हवाई अड्डे के द्वारा सीधे नई दिल्ली, पटना, कोलकाता, मुंबई, वाराणसी और अन्य प्रमुख शहरों के साथ जुड़ा हुआ है.

सडक के द्रारा:-


टोंक से राज्य के लगभग सभी भागों के लिए और राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के लिए भी लगातार बस सेवायें हैं.

 

रेलमार्ग द्वारा:-


टोंक  से ट्रेन अच्छी तरह से जुडी हुई है.

 

 








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