उत्तर प्रदेश     मिर्जापुर     चुनार


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

चुनार समूह के बारे मे:-

चुनार समूह उतरप्रदेश राज्य के मिर्ज़ापुर जिले में पडता है।

चुनार समूह २००  से ज्यादा कारीगरो और २० SHG बना पाये है जो मजबुत कार्यबल देता है। यह संघठन का संवेग दिन-प्रतिदिन बढ रहा है।

मृण्मूर्ति:-

मृण्मूर्ति कला उसका पहले कै सदियो का लंबा और अविरत इतिहासने उन आदर्शो को ग्रहण किया है जो मानव स्वरुप का पूरा और अद्रितिय समज का आधार है।मिट्टी कला शायद मानव उत्पति मे सबसे पुरानी है और उसका काल आने की निशानि है।उसने आदमी की तरह ही कुदरत का सामना किया है,और वह उसके चुनौतीयो से हिल गया है।पृथ्वी से हि निर्माण हो के वह उसकी चीजो की अस्तित्व की सीमाओ को बढाना चाहता है,अपनी सृजनात्मक आत्मा को अभिव्यक्ति देने के लिए।इस लिए उसने मिट्टि को अपने हाथो मे लिया और अनंत आकारो की शोभा और सुंदरता की पूरी नइ दुनिया बनाने की शुरुआत की।

भारत उसकी मृण्मूर्ति और कुम्हारी संस्कृति में धनवान है जिसमे से कइओ के मूल पूर्वइतिहास में है।कुम्हारीकाम मे चौडी व्यापकता है और उसकी परंपरा पांच सदीओ के समयकाल में पीछे जाती है।मृण्मूर्ति कुम्हारी को हस्तकला का गीत कहा जाता है उसकी अप्रतिकारात्मक अपील की बजह से।अलग अलग तरीके की मिट्टी की चीजे बनाइ गइ है जैसे की लेम्प,घडा,फूलदानी,कुंजा,संगीत का वाद्य,मोमबती का स्टेन्ड इत्यादि।

थोबाल जिल्ले के चाइरन,शांगमाइ और थोनगीओ गांवो मे और इम्फाल (पूर्व) के आन्ड्रो में मृण्मूर्ति चीजे ,खिलोनो समेट सुशॊभन और उपयोग के लिए कर्मकांड कि वस्तुए पूरे राज्यमें बनती है।अन्य उद्योग जो बनाते है वह है अगरबतीया,खिलोने,ढिंगलीया और मूर्तिका इत्यादि।

कच्ची सामग्री:-

बुनियादी सामग्री:मिट्टी/कीचड,राइ का तैल,कुम्हार का पैया,चिपकाने वाला पदार्थ,स्टार्च,वेक्स,कादव,कुम्हार का पैया,पैड की छोटी डालिया,सूखी डालिया,पते, जलाउ लकडी, चावल की लकडी,लाल मिट्टी,काली मिट्टी,पीली मिट्टी, पलो मिट्टी,अलग अलग प्रकार की मिट्टीया (कादव / कीचड) ,खाने लायक गुंदर,स्टार्च,मिट्टी । सजाने की सामग्री: राख,रेत,गाय का गोबर,चावल के भूंसी, मिट्टी, रेत,फुननफाडी (भीना कपडा),फुजेइ(लकडे का धोका), कांगखील , बंध किया हुआ पात्र का स्लेब,लेपसम (बेलनाकार प्लेटफार्म) , प्लास्टीक क्ले मिट्टी,राइ का तैल,कुम्हार का पैया,खाने लायक गुंदर, स्टार्च, फेल्डस्पार, मिट्टी, वेक्स।

प्रक्रिया:-

आकार जो अलग अलग उपयोगो के लिए जरुरी है उनको पहिये पे बनाये जाते है।चोक्कस हिस्सा जैसे की टोटा या हेन्डल को छॊड दिया जाता है।उनको अलग से ढाला जाता है और बाद में शरीर से जोडा जाता है।उसके बाद, ज्यामितीय पेटर्न बनाने के लिए सतह पे कर्तन पेटर्न के द्रारा सजावट कि जाती है ।

मिट्टी जो राख और रेत के साथ मिश्रित कि गइ है उनको पांव से गूंधा जाता है,लाहासूर से इकठ्ठा और काटा जाता है।उसके बाद हाथो से गूंधा जाता है,पीडा पे और पिंडक बनाया जाता है।सभी ठोस चीजे निकाल दि जाती है।तैयार मिट्टी को पहिये पे अलग अलग आकार बनाने के लिए रखी जाती है।कुम्हार के पहिये मे छोटे दंड होते है लकडा या धातु के आधार वाले हिस्से पे घुमता है और बहुत सारी जगह दी गइ होती है जो घुमते हुए टेबल के जैसा काम करता है।गोलाकार भाग के छिद्र में सीधी लकडी को दाखिल की जाती है।कुम्हार पहिये के मध्यमें गूंधी हुइ मिट्टी को फेंकता है,और लकडी से पहिये को गोल गोल घुमाता है।केन्द्र में लगनेवाले बल के कारण मिट्टी का पिंड बाहर की तरफ और उपर की तरफ खींचता है और पात्र के आकारमें बनता है।इसको धागे से खींच लीय़ा जाता है,सूखा के कुम्हार की भठ्ठी में गर्म किया जाता है।मिट्टी की चीजे गर्म करने के बाद मृण्मूर्ति बन जाती है।

जो को सरल खुले खड्डे वाली भठ्ठी में गर्म किया जाता है जो कुंजो को 700-800 से. तक गर्म करने के लिए बहुत हि असरकारक और बिना खर्चेवाली होती है । कुंजो को कुंजो के स्तरमे रखा जाता है,कंइ बार पतो , पेड की डालीयो,और गाय के कंडा के स्तर को दाखिल किया जाता है।उपरी स्तर बाद में चावल की लकडियो के आवरण से ढक दिया जाता है उसके बाद उसके उपर दुम्मटी मिट्टी का पतला स्तर किया जाता है। गर्म होने मे चार से पांच घंटे लगते है।

काली ,लाल और पीली मिट्टी का मृण्मूर्ति चीजे बनाने के लिए इस्तेमाल होता हे,जिनको छोटे टुकडो के रुप में राजस्थान और दिल्ली से इकठ्ठा किया जाता है।यह सामग्री को ठीक तरीके से मिश्रित किया जाता है और गर्म सूरज मे रख के सूखाया जाता है जिसके कारण कोइ भी मात्रा में अगर नमी हो तो उसका वाष्पीकरण हो जाये।उसके बाद भीनी मिट्टी को कंकरो को दूर करने के लिए अच्छी छलनी से छाना जाता है।हाथो से आकार देने के बाद चीजो को कामचलाउ भठ्ठी में गरम किया जाता है गाय के कंडा, इंधन, और आरी की धूल इत्यादि से ढका जाता है।

मिट्टी जो राख और रेत के साथ मिश्रित कि गइ है उनको पांव से गूंधा जाता है।उसके बाद हाथो से गूंधा जाता है,पीडा पे और पिंडक बनाया जाता है।सभी ठोस चीजे जैसेकी ग्रेवल,छोटे कंकर,पेड की डालीया इत्यादि को दूर कर दिया जाता है।तैयार मिट्टी को पहिये पे रखा जाता है अलग अलग आकार बनाने के लिए।कुम्हार के पहिये पे नरम स्पोकस होते है,लकडे और धातु के आधार पर घुमता है और बहुत सारी जगह दी जाती है जो घुमते हुए टेबल के जैसा काम करता है।गोलाकार भाग के छिद्र में सीधी लकडी को दाखिल की जाती है।कुम्हार पहिये के मध्यमें गूंधी हुइ मिट्टी को फेंकता है,और लकडी से पहिये को गोल गोल घुमाता है।केन्द्र में लगनेवाले बल के कारण मिट्टी का पिंड बाहर की तरफ और उपर की तरफ खींचता है और पात्र के आकारमें बनता है।इसको धागे से खींच लीय़ा जाता है,सूखा के कुम्हार की भठ्ठी में गर्म किया जाता है।मिट्टी की चीजे गर्म करने के बाद मृण्मूर्ति बन जाती है।

तकनीकियाँ:-

स्त्री कुम्हार अनोखी हाथ नमूने की तकनिक का प्रयोग करती है,संभवत: पहिये की खोज से पहले निओलीथीक समय के पूर्व पीछे जाते है तो। जो चीजे बनती है वो है सरल कुंजे की सतह,पानी छलनी, गुलदानीया ,अगरबतीयां, लेम्प और हुक्का।

कैसे पहुचे :-

उतर प्रदेश का मुख्यमथक मिर्ज़ापुर सभी तीन वाहनव्यवहार के माध्यमो - हवाइ,रेल,और रोड मार्ग से अच्छी तरह जुडा हुआ है।यह शहर सीधा नइ दिल्ली, पटना, कोलकता, मुंबइ, वारानसी और अन्य मुख्य शहेरो से अमोसी हवाइ अड्डे के द्रारा अच्छी तरह जुडा हुआ है।उसी तरह वह उतर,पूर्व,दक्सिण,और पश्र्चिम से रेल और रोड के द्रारा जुडा हुआ है। लखनौ से लगभग राज्य के तमाम हिस्सो में और नइ दिल्ली राष्ट्रीय मुख्यमथक से भी, बहुत सारी बस सेवाए है।








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