मध्य प्रदेश     झबुआ     बर्जर


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

 

बर्जर समूह के बारे में:-

 

बर्जर समूह मध्य प्रदेश राज्‍य में  उज्जैन  जिला के अर्न्‍तगत आता है.

 

बर्जर समूह 316 से अधिक कलाकारों तथा 15 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

 

कपडे की हाथबुनाइ :-

 

मध्य प्रदेश हाथबुनाइ की कम से कम छ विविधताए है,हरेक अपना नाम पाती है उस गांव से जहा से वह शुरू हुइ है और हरेक अपनी अलग शैली के साथ।एस श्रेणी की निर्विवाद रानी,युं तो,कहानीरुप जामदानी है,जो उसके सभी असंख्य स्थानिक अवतारो में उसके मूल वैभव और सौजन्य को बनाये रखने मे जुटे है।मूल रचना को डाकाइ जामदानी कहा जाता है,यह आज नवदीप और धातीग्राम उतरप्रदेशमें बनाये जाते है।

 

 

डकाइ जामदानी उसके उत्परिवर्तित भाइबंधुओ से उसकी अच्छी बुनावट जो मुसलिन जैसी लगती है और वर्णात्मक और सुशॊभनयुक्त कामगीरी के कारण काफी अलग है। बांग्लादेशमे बुनाइ करनेवाले इजीप्त का अच्छा कपास इस्तेमाल करते है,जब कि भारतीय बुनाइ करनेवाले सिर्फ देशी कच्ची सामग्री का इस्तेमाल करते है।एक वार्प को सामान्य रुप से दो ज्यादा वेफ्ट के साथ सुशोभित किया जाता है उसके बाद आता है मूल वेफ्ट।जब कि मूल बांग्लादेश सारी मटियाला पृष्ठभूमि पर स्थिर रुप से है,भारतीय बुनाइ करनेवाले रंगो की पसंद करने मे थोडे साहसिक है।बारीक पतलि काली जामदानी उसके बहुरंगी रेखीय या फूलो की डिजाइन की चमक पूरी बस्तु पे और किनारी पे बडी उदारता से बिखराती है और एक अभूतपूर्व डिजाइन से खिल उठती है सजा हुआ पल्लू आंखो के लिए लुभावना होता है।

 

जब कि डक्काइ जामदानी सिर्फ पार्टीओ मे ही पाइ जाती है,अन्य जामदानी फेशन जागृत काम करती महिलाए उनके दिखावे के लिए काफी पसंद करती है।यह खास करके जामदानी डिजाइन टेनगेइल कपडे पे है और सामान्य रुप से जाना जाता है उलजानेवाले टेनगेइल जामदानी के  नामकरण के द्रारा।मटियाला पृष्ठभूमि युं देखे तो ज्यादा लोकप्रिय है,ये विभिन्न रंगो मे उपलब्ध होती है खरीद शके एसी किंमतो मे।

 

कच्ची सामग्री:-

 

1. धागा

 

2. सूती कपडा

 

3. लकड़ी के ब्लाक

 

4. रंग

 

प्रक्रिया:-

 

उन को हर वसंत ऋतु मे इकठ्ठा किया जाता है और कातना हाथो से होता है।यार्न को कांतने के पहिये पे काता जाता है जिसको स्थानिक रुप से चरखा कहते है।कांतने से पहले कच्ची सामग्री की खींचाइ और उसमे कोइ धुल हो तो दूर करने के लिए सफाइ होती है और कुछ दिनो तक चावल और पानी के मिश्रणमे तरबतोर किया जाता है उसको नरम बनाने के लिए।हाथ-कताइ बहुत ही पीडाजनक और लंबा काम है।इसको बहुत ही धीरज और समर्पण की जरुरत होती है और देखने की एक अदभुत प्रक्रिया होती है।

 

पावर लूम्स से होते कंपनो के लिए यार्न बहुत हि कच्चे होते है इसलिए पारंपरीक 100% शोल की बुनाइ हाथ के लूम से होती है।बुनाइ करने वालो के लिए यह जरुरी होता है की उनके पास हरेक श्रेष्ठ कपडे के लिए एक समान हाथ हो।बुनाइ शटल से होती है।बुनाइ की प्रक्रिया अपने आप हि एक कला है,जिसको इक पीढी से दूसरी पीढी देती चली आती है।हेन्डलूम पे एक शोल को बुनने में करीबन 4 दिन लगते है।

 

डाइ भी हाथो से की जाती है और हरेक चीज को अलग से।डाइ करने वाले बडे ही धीरज से और पीढीओ के अनुभववाले वो व्यक्ति है जो शोल को डाइ करते है,इस तरह की छोटी से गलती उत्पादन की गुनवता को दिखाती है।सिर्फ धातु और एजो-म्क्त डाइ इस्तेमाल होती है,जो शोल को पूरी तरह से इको फ्रेन्डली बनाते है।डाइ करने के लिए शुध्ध पानी सतह की नीचे गहराइ से पम्प किया जाता है।डाइ उत्कलन बिंदु के थोडे हि कम तापमान पे करीबन एक घंटे तक किया जाता है।पश्र्मिनो उन पूरी तरह से अवशोषक है और सरलता से और गहराइ तक डाइ होती है।

 

तकनीकियाँ:-

 

जामदानी मे कागज पे बनाइ हुइ डिजाइन की पेटर्न को वार्प धागे के नीचे पीन किया जाता है।जैसे बुनाइ आगे चलती है ,वैसे डिजाइन कसीदाकाम की तरह बनती जाती है।जब वेफ्ट धागा फुल या अन्य आकृति की जिसे दाखिल करनी है उसके नजदीक आता है तब बुनाइ करनेवाला बांस की सूइ का एक सेट ले लेता है जो हरेक के आसपास अलग अलग रंगो का लपेटा हुआ यार्न होता है जिस तरह से डीजाइन मे जरुरत हो उस तरह से।जैसे जैसे हरेक वेफ्ट या उन का धागा वार्प मे से पसार होता है वो पेटर्न के छेदीत हिस्से को एक या दूसरे सूइ से सीता चला जाता है जैसे जरुरत हो उस तरह से और एसा चलता ही रहता है जब तक पेटर्न पूरी न हो तब तक।जब पेटर्न चलती रह्ती है और नियमित है तब निपुण बुनाइ करने वाला आम तौर से कागज की पेटर्न के साधन को निकाल देता है।

 

कैसे पहुचे :-

 

भोपाल विमानपत्तन पुराने शहर से 12 कि.मी. दूरी पर स्थित है. नियमित उड़ानें भोपाल को दिल्‍ली, मुम्‍बई, इन्‍दौर तथा मुम्‍बई से जोड़ती हैं. भोपाल दिल्‍ली-मुम्‍बई प्रमुख दो रेलवे लाइनों में से एक पर है. रेलवे स्‍टेशन हमीदिया रोड के निकट है. मुम्‍बई से दिल्‍ली वाया इटारसी तथा झांसी जाने वाली ट्रेनें भोपाल में से भी जाती हैं. सॉंची(46 कि.मी.),विदीशा (56कि.मी.), इंदौर (186कि.मी.),उज्‍जैन(188कि.मी.),तथा जबलपुर(295कि.मी.) के लिए अनेक बस सेवाएं हैं.

 

 

 

 








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