झारखण्‍ड     हजारीबाग     घाटोटाण्‍ड


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

घाटोटाण्‍ड समूह के बारे में:-

घाटोटाण्‍ड समूह झारखण्‍ड राज्‍य में हजारीबाग जिला के अर्न्‍तगत आता है.

घाटोटाण्‍ड समूह 135 से अधिक कलाकारों तथा 8 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

मृण्मूर्ति:-

टैराकोटा को गरीब व्‍यक्ति की नक्‍काशी कहा जाता है. यह आरंभिक माध्‍यम है जिसमें मनुष्‍य ने ढालना आरंभ किया. प्रयोग की जाने वाली मिट्टी नदी तलों, गढ्ढों, नालियों की दो-तीन मिट्टियों का मिश्रण होती है. प्राय प्रयोग किया जाने वाला ईंधन उपलब्‍ध स्‍थानीय स्रोतों टहनियों, सूखे पत्ते या जलावन लकड़ी के रूप में होता है. चिमनियां जहां पर मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं 700-800 डिग्री सैल्सियस तापमान पर संचालित की जाती हैं.

कुंभकार परिवारों की महिलाएं घडे निर्माता होती हैं जो पहिए/चक्र पर कार्य करते हुए बर्तनों की गोल गर्दन और आधा भाग बनाती हैं. वे ठोस मिट्टी के खिलौने तथा गुडिया भी बनाती हैं जो मिट्टी के पके हुए रूपों में ढाले जाते हैं. देवी-देवताओं की आकृतियां बड़ी संख्‍या में निर्मित की जाती हैं जो इन परिवारों के लिए अत्‍याधिक आय पैदा करती हैं.

भारत में कुम्हारी और मिट्टी और बर्तन बनाने की समृद्ध परंपरा रही है जिसकी जडें प्रागैतिहासिक काल में हैं. मिट्टी के बर्तनों में एक विस्तृत सार्वभौमिकता है और यह परंपरा पांच सदी पहले से चली आ रही है. मिट्टी के वस्तुओं की कलाकारी को इसकी कभी न खत्म होने वाले आकर्षण के कारण हस्तशिल्प का गीत कहा जाता है. बहुत तरह के मिटटी की चीज़ें जैसे लैंप, पटिया, फूल के गमले, बर्तन, संगीत के उपकरण, मोमबतीदान बनायीं जाती हैं.

कच्ची सामग्री :-

मुख्‍य कच्‍ची सामग्री निकटवर्ती तालाबों से एकत्रित की जाती है. पकाने के लिए ईंधन अन्‍य महत्‍वपूर्ण कच्‍ची सामग्री है जो मिट्टी को स्‍थायित्‍व प्रदान करता है. सूखी घास और वन अपशिष्‍ट के साथ नारियल तने भी प्रयुक्‍त किए जाते हैं. 

 

उपकरण:-

इस शिल्‍प में प्रयुक्‍त बाल बियरिंग सहित पहिया/चक्र महत्वपूर्ण उपकरण है. विद्युत चालित पहिया/चक्र भी उपलब्‍ध है. अन्‍य उपकरणों में काटने आकार देने के उपकरण, काटने का तार, हस्‍त सजावट चक्र हैं. टैराकोटा वस्‍तुओं को पकाने के लिए पारंपरिक भटिठयों का प्रयोग किया जाता है.  


प्रक्रिया:-

आकार जो अलग अलग उपयोगो के लिए जरुरी है उनको पहिये पे बनाये जाते है।चोक्कस हिस्सा जैसे की टोटा या हेन्डल को छॊड दिया जाता है।उनको अलग से ढाला जाता है और बाद में शरीर से जोडा जाता है।उसके बाद, ज्यामितीय पेटर्न बनाने के लिए सतह पे कर्तन पेटर्न के द्रारा सजावट कि जाती है ।

मिट्टी जो राख और रेत के साथ मिश्रित कि गइ है उनको पांव से गूंधा जाता है,लाहासूर से इकठ्ठा और काटा जाता है।उसके बाद हाथो से गूंधा जाता है,पीडा पे और पिंडक बनाया जाता है।सभी ठोस चीजे निकाल दि जाती है।तैयार मिट्टी को पहिये पे अलग अलग आकार बनाने के लिए रखी जाती है।कुम्हार के पहिये मे छोटे दंड होते है लकडा या धातु के आधार वाले हिस्से पे घुमता है और बहुत सारी जगह दी गइ होती है जो घुमते हुए टेबल के जैसा काम करता है।गोलाकार भाग के छिद्र में सीधी लकडी को दाखिल की जाती है।कुम्हार पहिये के मध्यमें गूंधी हुइ मिट्टी को फेंकता है,और लकडी से पहिये को गोल गोल घुमाता है।केन्द्र में लगनेवाले बल के कारण मिट्टी का पिंड बाहर की तरफ और उपर की तरफ खींचता है और पात्र के आकारमें बनता है।इसको धागे से खींच लीय़ा जाता है,सूखा के कुम्हार की भठ्ठी में गर्म किया जाता है।मिट्टी की चीजे गर्म करने के बाद मृण्मूर्ति बन जाती है।

जो को सरल खुले खड्डे वाली भठ्ठी में गर्म किया जाता है जो कुंजो को 700-800 से. तक गर्म करने के लिए बहुत हि असरकारक और बिना खर्चेवाली होती है । कुंजो को कुंजो के स्तरमे रखा जाता है,कंइ बार पतो , पेड की डालीयो,और गाय के कंडा के स्तर को दाखिल किया जाता है।उपरी स्तर बाद में चावल की लकडियो के आवरण से ढक दिया जाता है उसके बाद उसके उपर दुम्मटी मिट्टी का पतला स्तर किया जाता है। गर्म होने मे चार से पांच घंटे लगते है।

काली ,लाल और पीली मिट्टी का मृण्मूर्ति चीजे बनाने के लिए इस्तेमाल होता हे,जिनको छोटे टुकडो के रुप में राजस्थान और दिल्ली से इकठ्ठा किया जाता है।यह सामग्री को ठीक तरीके से मिश्रित किया जाता है और गर्म सूरज मे रख के सूखाया जाता है जिसके कारण कोइ भी मात्रा में अगर नमी हो तो उसका वाष्पीकरण हो जाये।उसके बाद भीनी मिट्टी को कंकरो को दूर करने के लिए अच्छी छलनी से छाना जाता है।हाथो से आकार देने के बाद चीजो को कामचलाउ भठ्ठी में गरम किया जाता है गाय के कंडा, इंधन, और आरी की धूल इत्यादि से ढका जाता है।

मिट्टी जो राख और रेत के साथ मिश्रित कि गइ है उनको पांव से गूंधा जाता है।उसके बाद हाथो से गूंधा जाता है,पीडा पे और पिंडक बनाया जाता है।सभी ठोस चीजे जैसेकी ग्रेवल,छोटे कंकर,पेड की डालीया इत्यादि को दूर कर दिया जाता है।तैयार मिट्टी को पहिये पे रखा जाता है अलग अलग आकार बनाने के लिए।कुम्हार के पहिये पे नरम स्पोकस होते है,लकडे और धातु के आधार पर घुमता है और बहुत सारी जगह दी जाती है जो घुमते हुए टेबल के जैसा काम करता है।गोलाकार भाग के छिद्र में सीधी लकडी को दाखिल की जाती है।कुम्हार पहिये के मध्यमें गूंधी हुइ मिट्टी को फेंकता है,और लकडी से पहिये को गोल गोल घुमाता है।केन्द्र में लगनेवाले बल के कारण मिट्टी का पिंड बाहर की तरफ और उपर की तरफ खींचता है और पात्र के आकारमें बनता है।इसको धागे से खींच लीय़ा जाता है,सूखा के कुम्हार की भठ्ठी में गर्म किया जाता है।मिट्टी की चीजे गर्म करने के बाद मृण्मूर्ति बन जाती है।

तकनीकियाँ:-

शिल्‍पकार जो चक्र पर वस्‍तुओं को कच्‍चे रूप में क्षेपित करते हैं उन्‍हें सिखलाया जाता है कि विभिन्‍न वस्‍तुओं को वांछित आकार में किस प्रकार रूप प्रदान किया जाए. शिल्‍पकार को क्षेपित पात्रों की सहायता से कलात्‍मक वस्‍तुएं निर्मित करने का परामर्श दिया जाता है. क्षेपित वस्‍तुओं को हल्‍की कठोरता ग्रहण करने के लिए छाया में रखा जाता है और तब चाकू की सहायता डिजाइन निर्मित करना सिखाया जाता है. यह उपाय प्रकाशछादकों के लिए अति उपयुक्‍त है.

हल्‍की कठोरता की अवस्था में उन्‍हें केवल उत्‍कीर्ण का अनुशिक्षण दिया जाता है जिससे डिजाईन प्रमुखता से उत्‍कीर्ण किए भाग के आस-पास उभरते हैं.

मिट्टी की कुंडलियां निर्मित करना तथा उत्‍पादों के आधार पर लगाना सुन्‍दर रूप उत्‍पन्‍न करता है.  अंतिम उत्‍पाद को कोमलता प्रदान करने के लिए जबकि यह हल्‍का कठोर होता है उत्‍पाद को बहुत अच्‍छी चमक के लिए स्‍फटिक गुटके का प्रयोग करना सिखालाया जाता है.

अच्‍छी दिखावट के लिए, जो उत्‍पाद की मूल्‍य में वृद्धि करता है शिल्‍पकारों को वार्निश की परत देने और टैराकोटा रंग करने पर जोर दिया जाता है. प्रतिभागियों को रंग योजना का महत्‍व भी सिखाया जाता है.


कैसे पहुँचें: -

 

हवा से:-

 

निकटतम विमानपत्तन रॉंची कलकत्ता, पटना, लखनऊ तथा दिल्‍ली से इंडियन एयरलाइंस की नियमित सेवाओं से जुड़ा हुआ है.

 

सड़क मार्ग से: -

 

हजारीबाग कस्‍बा सड़क द्वारा रॉंची 91 कि.मी. धनबाद 128कि.मी. गया 130 कि.मी. पटना 235 कि.मी. डाल्‍टनगंज 198 कि.मी., कलकत्ता(वाया आसनसोल-गोविन्‍दपुर-बारही) 434 कि.मी. से जुड़ा हुआ है. हजारीबाग राष्‍ट्रीय पार्क हजारीबाग कस्‍बे से 19 कि.मी. दूर है. नियमित बस सेवाएं कस्‍बे को कोडरमा, हजारीबाग रोड रेलवे स्‍टेशन, पटना, गया, रॉंची, धनबाद, डाल्‍टनगंज एवं अन्‍य निकटवर्ती स्‍थानों से जोड़ती है.

 

ट्रेन से: -

 

निकटतम रेलवेस्‍टेशन कोडरमा है जो 59 कि.मी. दूरी पर है या वैकल्पिक रूप से हावड़ा-दिल्‍ली मुख्‍य तन्‍त्री लाईन पर स्थित हजारीबाग रोड रेलवे स्‍टेशन कि.मी.) से राष्‍ट्रीय पार्क जा सकते हैं.

 








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