इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|
रायपुर कल्स्टर के बारे में:-
रायपुर कलस्टर छत्तीसगढ़ राज्य में रायपुर जिला के अर्न्तगत आता है|
रायपुर कल्स्टर 100 से अधिक कलाकारों तथा 10 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है|
घास, पत्ता, सरकंडे, तथा रेशा:-
एशिया विशेषकर भारत, बॉंग्लादेश तथा चीन का उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र जूट के लिए अति प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र में जूट शिल्प बहुत प्रसिद्ध है तथा इसे एक सरकंडे के समान पौधे से प्राप्त किया जाता है. पश्चिम बंगाल की नम एवं उष्ण जलवायु तथा वर्षा की अधिकता इस पौधे के लिए बहुत अनुकूल है. यह पौधा 3-4 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है तथा पकने में छह माह तक समय लेता है. जूट दूसरा सर्वाधिक प्रसिद्ध पौधे से प्राप्त प्राकृतिक रेशा है जो प्रचुरता में उपलब्ध है|
एक बार जब पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है तो इसे भूमि के अति निकट से काटा जाता है तथा भूमि पर एक या दो दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है जिससे पत्ते झड़ जाते हैं. रेशा अलग करने के लिए पौधे को जल सोखने के लिए डुबोया जाता है. यह प्रक्रिया सड़ाने के रूप में जानी जाती है. इस प्रकार पृथक किए गए जूट को सुखाया जाता है और विभिन्न आकार प्रदान किए जाते हैं. रेशों की धागों में बंटाई की जाती है. कभी-कभार धागों की वस्त्र एवं कालीन बनाने के लिए बुनाई की जाती है. साफ रेशों, धागों, तथा अवशेषों सभी का प्रयोग शिल्प उत्पाद जैसे थैले, गलीचे, कालीन, लटकन, जूते, कोस्टर, आभूषण, सजावटी वस्तुएं आदि निर्मित करने के लिए किया जाता है. कुछ अति उच्च गुणवत्ता के जूट का प्रयोग सज्जा सामगी तथा परिधान बनाने में भी किया जाता है|
कच्ची सामग्री:-
छत्तीसगढ़ राज्य के गॉंव ताड़, नारियल, खजूर, तथा पनईताड़ वृक्षों से समृद्ध हैं. टोकरियां तथा अन्य संबंधित सामग्री तैयार करने के लिए कच्ची सामग्री के स्रोत के रूप में ताड़ प्रमुख स्रोत है. अन्य कच्ची सामग्री जैसे बॉंस, बेंत, घास, रेशे तथा सरकंडों का प्रयोग भी टोकरियां, छप्पर, चटाईयां तथा अन्य अनेक वस्तुएं बनाने में किया जाता है|
प्रक्रिया:-
रेशे को पहले सड़ाने के द्वारा प्राप्त किया जाता है. सड़ाने की प्रक्रिया में जूट तनों को इक्ट्ठे बंडलों में बांधना तथा उन्हें बहते हुए पानी में नीचे डुबोना सम्मिलित है. सड़ाने के दो प्रकार हैं: तना एवं फीता. सड़ाने की प्रक्रिया के पश्चात् उधेड़ने की प्रक्रिया आरंभ होती है. प्राय: महिलाएं एवं बच्चे यह कार्य करते हैं. उधेड़ने की प्रक्रिया में रेशा रहित सामग्री हटा दी जाती है, तब श्रमिक जूट तनों से झटके द्वारा खींचकर रेशा अलग करते हैं|
जूट थैलों का प्रयोग फैशन बैग तथा प्रचार थैलों के लिए किया जाता है. जूट की पर्यावरण अनुकूल प्रकृति इसे आदर्श व्यवसायिक उपहार बनाती है.
जूट के फर्श बिछावन में बुने हुए तथा गुच्छेयुक्त एवं ढेरनुमा कालीन सम्मिलित होते हैं. 5/6 मीटी चौड़ाई तथा विस्तृत लंबाई के जूट के गलीचे एवं कालीन, फैंसी तथा ठोस रंगत में तथा विभिन्न बुनावट जैसे बक्कल, पनामा, हेरिंगटन आदि में देश के दक्षिणी भागों में सुगमता से बनाए जाते हैं. भारत के केरल में जूट चटाईयां तथा कालीन हैण्डलूम तथा पावरलूम दोनों के द्वारा अत्यधिक मात्रा में बनाए जाते हैं. पारंपरिक सतरंजी चटाई गृह-सज्जा में अति प्रसिद्ध हो रही है. गैर बुने हुए तथा मिश्रीत जूट का प्रयोग गद्दे, लिनोलियम आधार एवं अनेक वस्तुएं निर्मित करने में किया जा सकता है|
इस प्रकार जूट इसके बीज से लेकर विनष्ट रेशे तक अत्यधिक पर्यावरण अनुकूल है, क्योंकि विनष्ट रेशा एकाधिक बार पुर्नचक्रित किया जा सकता है|
तकनीकियाँ:-
व्यवहारिक कार्य श्रमिक को तकनीक के आधुनिकीकरण से परिचित कराना तथा दक्षता को उन्नत करना एवं उसकी उत्पादन क्षमता एवं आय में वृद्धि करना है ताकि उसे अपने जीवन की मौलिक आवश्यकताएं पूरा करने तथा तर्कसंगत समय में गरीबी के पंजों से मुक्त होने में सक्षम बनाया जाए|
कैसे पहुचे :-
रायपुर की यात्रा के लिए हवाईमार्ग का प्रयोग अति प्रचलित एवं व्यवधान रहित माध्यम है. अनेक फ्लाइटें रायपुर का अन्य प्रमुख नगरों से संपर्क स्थापित करती हैं. आप दिल्ली, भुवनेश्वर, भोपाल तथा जबलपुर से रायपुर पहुँच सकते हैं. इन शहरों तथा रायपुर के मध्य नियमित उड़ानें हैं. रायपुर दक्षिणी-पूर्वी रेलवे के लिए मुम्बई,नागपुर तथा कलकत्ता मार्ग के लिए प्रमुख जंक्शन के रूप में कार्य करता है. रेलयात्रा भी रायपुर आने के लिए प्रसिद्ध एवं अति प्रचलित विकल्प है, विशेषकर उनके लिए जो हवाई को ज्यादा मंहगा समझते हैं. सड़कमार्ग द्वारा रायपुर पहुँचना संभवत: शहर तक यात्रा का सर्वाधिक कम खर्चीला माध्यम है. राष्ट्रीय राजमार्ग 6 शहर को विभाजित करता है तथा राष्ट्रीय राजमार्ग 43 शहर का विजयनगरम से संपर्क स्थापित करता है