झारखण्‍ड     हजारीबाग     हजारीबाग


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

हजारीबाग समूह के बारे में:-

हजारीबाग समूह झारखण्‍ड  राज्‍य में हजारीबाग जिला के अर्न्‍तगत आता है.

हजारीबाग समूह 200 से अधिक कलाकारों तथा 12 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

बेंत और बास:-

छोटा नागपुर पठार क्षेत्र बॉंस वृक्षों से सघन रूप से आच्‍छादित है और क्षेत्र के आदिवासी उत्‍कृष्‍ट टोकरियां, बेंत उत्‍पादों एवं अन्‍य उपयोगी वस्‍तुएं निर्मित करने में दक्ष हैं. इस क्षेत्र की उष्‍णकटिबन्धिय जलवायु में बॉंस शिल्‍प की परंपरा रही है तथा कच्‍ची सामग्री की प्रचुर उपलब्‍धता नें स्‍थानीय लोगों को इस प्राचीन शिल्‍प में प्रवीणता प्राप्‍त करने के योग्‍य बनाया. बेंत एवं बॉंस के अनेक उपयोग होते हैं. मोटे बॉंस तनें भवनों में प्रयुक्‍त होते हैं, कटे-बाँस जल-संग्राहक के रूप में प्रयुक्‍त होते हैं. अन्‍य प्रयोग फर्शों के लिए बुनी हुई चटाईयां, टोकरियां, आदि हैं. इस क्षेत्र का बेंत और बाँस फर्नीचर उत्‍कृष्‍ट होता है.

झारखण्‍ड के दैनिक जीवन में सामान्‍य रूप में प्रचलित दो प्रमुख सामग्रि‍यां बेंत और बाँस है। गृह उपयोगी उपकरणों से आवासीय गृहों के निर्माण कार्य तक और बुनाई सामग्रियों से संगीत वाद्य तक बाँस से निर्मित किए जाते हैं। इस शिल्‍प में कोई भी यांत्रिक उपकरण प्रयोग नहीं किया जाता, जो मुख्‍यत एक गृह उद्योग है। टोकरी बुनाई के अतिरिक्‍त बाँस मुख्‍यत: गृहों और बाड़ निर्माण में प्रयुक्‍त होता है। यह शिल्‍प परम्‍परागत रूप से  किसानों को खाली समय में रोजगार प्रदान करता है, यद्यपि अब पूर्णकालिक शिल्‍पकार वाणिज्यिक गतिविधियों में संलग्‍न पाए जाते हैं।

झारखण्‍ड में प्रत्‍येक स्‍थान पर बाँस  उत्पाद प्रमाण के रुप में उपलब्‍ध है। इनके उपयोग की भिन्‍नता के अनुसार बाँस की टोकरियों के विभिन्‍न प्रकार और आकार होते हैं।  सामान्‍यत: घरेलू व्‍यक्ति बाँस की टोकरियां बुनते हैं। प्रत्‍येक जिले में इसकी अपनी विशिष्‍ट शैली होती है। सामान्य रूप में  तरीके से शंकु आकार की टोकरियां लाने जाने के लिए प्रयोग होती है और चौकोर या गोल तली की संग्रह करने के लिए प्रयोग होती हैं। झारखण्‍ड के हजारीबाग की बाँस टोकरी एक उदाहरण है। इसमें वर्गाकार तल होता है और जो अंदर की ओर ढकी होती है ताकि चौकोर के कोने आधार के रुप में कार्य करें और इसका मुंह चौड़ा होता है। इसें सुपारी रखने के लिए प्रयोग किया जाता है। बोडो बाँस की टोकरीमोड़ने की सहायता से बनाइ जाती है जिसका उपयोग ग्रीवा और मुख का आकार बनाने के लिए होता है। ग्रीवा से तली तक भूरे कागज का शंकु बनाया जाता है और टोकरी में रखा जाता है जिससे उसकी नोक तली को स्‍पर्श करे। शंकु का आकार बनाए रखने के लिए अंदर की और रेत भरी जाती है जिससे और बुनाई शंकु आकार आकार का अनुगमन करे।

बेंत और बाँस से गुड़िया और खिलौने भी बनाये जाते हैं। मनुष्‍यों और पशुओं की आकृतियों के अतिरिक्‍त खिलौना बंदूक और वाद्य यंत्र बनाये जाते हैं। बाँस से बना छाता का हत्था एक विशेषता है और इसमें पत्‍तों विसर्पी जीवों, पौधों छल्‍ले और चौकोर विन्‍यास इस पर उत्‍कीर्ण होते हैं। बाँस की एक विशेष किस्‍म जो मूली के रूप में जानी जाती है हत्‍थों के लिए प्रयोग की जाती है।

कच्ची सामग्री:-

कच्ची सामग्री मे समृद्ध होने के कारण झारखण्‍ड में सुंदर उत्पादों की विस्‍तृत किस्‍में हैं। पर्वतीय और मैदानी लोगों, प्रत्‍येक की अपनी शैली और विन्‍यास होता है। टोकरियां बनाने के अतिरिक्‍त बेंत और बाँस को फर्नीचर के रूप में भी परिवर्तित किया जाता है। न्‍यूनतम उपकरणों के साथ तिनके को तिनके के साथ जोड़ने और पत्‍तों को एकदूसरे के साथ गूंथकर बेंत और बाँस से निर्मित सामग्रियां मनुष्‍य की प्राचीनतम रचनाओं में से एक है। धार्मिक उद्देश्‍यों के लिए इसे शुद्ध समझा जाता था। झारखण्‍ड का बेंत कार्य शिल्‍प दक्षता के उत्‍कृष्‍ट नमूनों मे से एक है। समृद्ध जंगलों में कच्ची सामग्री प्रचुरता में उपलब्‍ध है जो उद्योग को इसका बल और टिकाऊपन प्रदान करती है।

प्रक्रिया:-

बेंत और बांस का पूरा तना हेक्सो से काटा जाता है और बीलहूक से अलग अलग मापों में सीधा काटा जाता है।बांस को धीमी आग में तपाता जाता है,आम तौर से केरोसीन के दीये से फ्लेक्सीबीलीटी की बजह से।चीजो को दो अलग अलग रुपो मे बनाई जाती है: बास्केट के लिए कोइल की आकारमे,और चटाइ बुनने के लिए।कोइल बास्केट बनाने में  मध्य हिस्से के आसपास बेंत को कोइल करने के द्रारा बास्केट का बुनियाद पहले बानाया जाता है।इसको स्प्रिंग आकारमें बनाया जाता है और धीरे धीरे चोडाइ बढती है जब तक इच्छीत उंचाइ पा न ले।कोइल को एकदूसरे के साथ सिलाइ की पट्टीओ से जोडा जाता है जिनको दो प्रकार से लगाया जा सकता है:बुनियादी कोइल के नये हिस्से के उपर हरेक टांको को पसार किया जाता है।आठ की आकृति बनाइ जाती है मतलब की टांका पहले की कोइल के पीछे उचाइ की और,उपर और नीचे  और नै कोइल कि दाइ तरफ जाता है।इस तरह पट्टीओ से कोइल सामग्री कि सिलाइ की जाती है और बास्केट बनाइ जाती है।बास्केट की सजावट दोरी,कागज और कोषो को पा के की जाती है।

काटने के साधन जिसे डाउ कहा जाता है उसकी मदद से कारीगर बांस को इच्छीत माप की लंबाइमें काटता है।अलग अलग प्रकार के चाकूओ की मदद से बांस की लंबाइ मोटाइ के अनुसार काटी जाती है।इस तरह से तैयार सामग्री को चीज या फर्नीचर की फ्रेम को बनाने के लिए इस्तेमाल होता है जब की पेन्सिल बेंत का डिजाइन बनाने और बांधने के हेतु इस्तेमाल होता है। बेंत को इच्छीत रुप मे फर्नीचर या चीज बनाने के लिए ब्लो लेम्प से गर्म करने की प्रक्रिया के द्रारा मोडा जाता है।दोनो तरफ के अंत को चिपकानेवाले पदार्थ और कील से जोडा जाता है और जोडॊ को पेन्सिल बेंत की पट्टीओ से बांधा जाता है।बेंत और बांस में पैदा हुइ चीजो को  सेन्ड पेपर से साफ की जाती है और वार्निश से पोलिश की जाती है।

बेंत और बांस की चीजे बनाने मे सामील है हेक्सो से पूरे तने को काटना और बिलहूक का इस्तेमाल करके अलग अलग मापो मे उनके चीरना।चीराइ गाढी जमा हुइ फाइबर की लंबाइ के साथ सीधी ही की जाती है,और आम तौर से सरल प्रक्रिया नहि है,और अंदर के मावे मे सिर्फ जरुरी मात्रा में नमी होनी चाहिए।बेंत को गर्म करने के लिए केरोसीन लेम्प का इस्तेमाल होता है उसको आकार मे मोडा जाए उससे पहले।

तकनीकियाँ:-

बेंत की उत्पादने बनाने में कंइ चरण पसार करने होते है,शुरू होता है जंगलो से कच्ची सामग्री को इकठठा करना।समतल सतह पाने के लिए कच्ची बेंत के उपली हिस्से को खुरचा जाता है।लबे बेंत की लकडीयो को छोटे टुकडो में काटी जाती है उसके बाद पतली पट्टीया पाने के लिए होता है बेंत को चीरना ।बेंत को आगे भी चीरा जा सकता है ,उसको जितना जरूरी हो उतना पतला बनान्रे के लिए।चीरे हुए बेंत को अब ब्लो लेम्प का इस्तेमाल करके मोडा जाता है जो सतह को थोडा जला सकता है;उसको सेन्डपेपर के द्रारा घीस के दूर किया जाता है।उसके बाद,चीज की डीजाइन जो उसमे से बन सकती है उसके आधार पर बेंत को बुना जाता है।खतम होने के बाद आखरी ट्च दीया जाता है,उत्पादन को वार्निस के स्तर से ढंका जाता है उसको बाजार में भेजने से पहले।

कैसे पहुंचे:-

निकटतम रेलवे स्‍टेशन बैद्यनाथ धाम देवघर है जो जसडीह रेलवे जंक्‍शन से आरंभ होने वाली 7 कि.मी. लम्‍बी शाखा लाईन का आखिरी स्‍टेशन है. सड़क द्वारा बैद्यनाथ धाम (देवघर कोलकाता 373 कि.मी., गिरडीह 112 कि.मी., पटना 281 कि.मी., डुमका 67 कि.मी. मधुपुर 57 कि.मी. शिमुलताला 53 कि.मी. हैं. लंबी दूरी की बसें बैद्यनाथ धाम को भागलपुर, हजारीबाग, रॉंची, टाटानगर, गया आदि से जोड़ती है.








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