उत्तर प्रदेश     लखनऊ     गोसाईंगंज


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

गोसाईंगंज समूह के बारे में: -

गोसाईंगंज समूह उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत लखनऊ जिले में आता है.

गोसाईंगंज समूह में मजबूत कार्य बल के रूप में 100 से अधिक कारीगरों एवं 10 स्वयं सहायता समूह तैयार करने की क्षमता है. आवागमन के कारण दिन-ब-दिन कार्य-बल में वृद्धि होती जा रही है.

हस्‍त छ्पाई:-

हस्‍त ब्लॉक छपाई संपूर्ण भारत में की जाती है और प्रत्‍येक क्ष्‍ेात्र की अपनी शैली और रंगो योजना होती है। उत्तरप्रदेश में पीलाखुआ मे शिल्‍पकार पीतल के ब्लॉक निर्मित करते हैं और उनका प्रयोग विन्‍यास की बाह्य रेखा तैयार करने के लिए करते हैं। जयपुर में शिल्‍पकार सागौन काष्‍ठ पर ब्लॉक का नक्काशीकार्य करते है। बाद में नक्काशी किए गए भाग को डुबोकर वस्‍त्र पर छपाई की जाती है। गुजरात में पेठापुर ब्लॉक छ्पाइ के लिए महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। वर्तमान में मिलों के कारण शिल्‍प का पतन हो रहा है।

चन्देरी स्टोल्स और दुपटे, मंगलगि‍री सलवार सूट और साडि़यां, महेश्वरी सलवार सूट और साडि़यां, तुषार सलवार सूट और साडि़यां,जार्जेट साडि़यां,शि‍फॉन साडि़यां, खादी सुती और खादी सिल्क में छपाई किए हुए वस्‍त्र, छपाई की हुई सूती वॉयल और सीटींग ।

जामदानी प्राय: हल्‍की पृष्‍ठभूमि में सफेद, मैरुन, काला, और हरा, सुनहरी ,सिल्वर और सुनहरी रंग के मुंगा सिल्क विन्‍यास में बुनी जाती हैं। जामदानी और तांगैल्‍स के मध्‍य अतिरिक्‍त बाना विन्‍यास का मुख्‍य अन्‍तर होता है; जामदानी में कशीदाकारी के धागे को प्रत्‍येक बुनाइ के बाद प्रविष्‍ट किया जाता है जबकी तांगैल्‍स में कशीदाकारी के धागे को दो बुनाईयों के बाद लिया जाता है। तांगैल्‍स की मुख्य अतिरिक्‍त बाना बुट्टीयां है; समपूर्ण पृष्‍ठभूमि पर सूक्ष्‍मविन्‍यासों को दोहराया जाता है। परम्‍परागत जामदानीयां सफेद रंग में ब्लीच किए गए सफेद विन्‍यास के साथ सफेद में बुनी जाती हैं। ज्‍यामितीय आकारों की परम्‍परागत जामदानी साडि़यां और सूती अति लोकप्रिय हैं,और पश्र्चिम बंगाल के मूल बुनकरों द्वारा बुनना जारी है। हल्की होने के कारण ये भारत जैसे उष्णकटि‍बंधीय देश में दैनिक पहनावे में उत्तम है।

कच्ची सामग्री:-

कोइ भी तंतु या रेशा ,या वह जिसे वस्त्र या कपड़ा तैयार किया जा सकता है,और परिणामस्‍वरूप स्‍वयं एक सामग्री है। यह शब्‍द मूल रुप से केवल बुने हुए कपड़े को ही निर्दिष्‍ट करता था वर्तमान में बुने हुए, जड़ाईई किए गए हुआ,नमदा और गुच्छा किये हुए कपडो को भी सम्मिलित करता है। वस्त्र उत्पादन में प्रयुक्‍त होने वाली मौलिक सामग्री रेशे हैं, चाहे प्राकृतिक स्रोतों (उदाहरण ऊन) प्राप्‍त किया गया है या रासायनिक पदार्थों से उत्पादित (उदाहरण पोलिस्टर) किया गया है। वस्‍त्र को उनके घटक रेशों के अनुसार सिल्क, ऊन, छालटी,सूती में वर्गीकृत किया जाता है, इस प्रकार के रेशे रेयोन, नायलोन और पोलिस्टर हैं और कुछ अकार्बनिक रेशे जैसे स्‍वर्ण वस्‍त्र, काँच के रेशे और एस्बेस्टोस कपड़ा है।

प्रक्रिया:-

वस्‍त्र हस्‍त छपाई कपड़े पर निश्र्चित नमूने या विन्‍यास में रंग करने की प्रक्रिया है। समुचित रूप से छ्पे हुए कपड़े पर रंग इस प्रकार जुड़े होते हैं कि बारम्‍बार धुलाई और घिसने से भी नष्‍ट नहीं होता। वस्‍त्र छपाई डाई करने से संबंधित है लेकिन जहां तक समुचित डाई में सम्‍पूर्ण वस्‍त्र को एकसमान रंग में रंगा जाता है, छपाई में केवल इसके निश्र्चित भागों में और स्‍पष्‍ट निर्दिष्‍ट नमूनों में एक या ज्यादा रंग लगाये जाते हैं। छ्पाई में काष्‍ठ के ब्लॉक, स्टेन्शिल, नक्काशी की गई प्लेट, रोलर्स, या सिल्कस्क्रीन का कपड़े पर रंग लगाने में प्रयोग होता है। छ्पाई में प्रयोग किए जाने वाले रंगो में गाढ़ी डाई सम्मिलित होती है ताकि केशिका आकर्षण के कारण रंग को नमूने या विन्‍यास की सीमाओं से बाहा फैलने से बचाव किया जा सके।

पारम्‍परिक वस्‍त्र छपाई तकनीक को चार शैलियों मे बांटा जा सकता है:

  • सीधी छपाई ,जिसमें डाईयां, रंगो को गाढ़ा करने के तत्‍व और रंगबंधक, या कपड़े पर रंग स्‍थापित करने के लिए आवश्‍यक तत्वों की कपड़े पर इच्छि‍त नमूनों में छपाई की जाती है।
  • डाई करने से पहले कपड़े पर इच्छित नमूने में रंगबन्‍धक की छ्पाई; जहां रंगबन्‍धक की छपाई हुई है सिर्फ वहां रंग चिपक जाता है।
  • प्रतिकार डाई करना, जिसमें मोम या पदार्थ की कपड़े पर छपाई की जाती है जिसे बाद में डाई किया जाता है। मोम क्षेत्र डाई स्वीकार नहीं करता, रंगीन पृष्‍ठभूमि पर पर रंगरहित नमूने छोड़ता है।
  • छपाई उतारना, जिसमें पहले से डाई किये वस्‍त्र पर विरंजक कारक की छपाई कुछ या संपूर्ण रंग को हटाने के लिए की जाती है।

प्रतिकार करना और उतारने की तकनीकें संयुक्‍त तकनीक के रुप मे विशेष रूप से 19 वीं सदी में प्रचलन में थी, जिसमें नील को अन्‍य रंगो की ब्लॉक-छपाई से पहले नीली पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता था।(1) अधिकतर आधुनिक औद्योगिकृत छपाई सीधी छपाई तकनीकों का प्रयोग करती हैं।

1. स्क्रीन तैयार करना-स्क्रीन को स्टेइन्लेश स्टील की फ्रेम परअच्छी तरह से कसे हुए जालीयुक्‍त डेक्रोन कपड़े पर तैयार की जाती है। डेक्रोन को हल्के संवेदनशील रंग की परत की जाती है, इसे अपारदर्शक काली स्‍याही से बने चित्र पर रखा जाता है, जिसे इसके बाद "नेगेटीव" बिम्‍ब तैयार करने करने के लिए प्रकाश के सम्‍पर्क में लाया जाता है। इसका परिणाम एक स्‍क्रीन होती है, जो स्‍याही से आबद्ध होने पर केवल स्‍याही को चित्र के अनुसार प्रवेश करने देती है।

2. स्‍याही का मिश्रण करना और लगाना।

3. छपाई मेज पर वस्‍त्र को बींधना ।

4. वस्‍त्र की छपाई - आधार सामग्री पर स्क्रीन को फैला दिया जाता है और स्‍याही को पूरी स्‍क्रीन पर निचोड़ दिया जाता है।

5. कपड़े को सूखाना।

तकनीकियाँ:-

इस रंग में अलग रंग सहित अपेक्षित नमूना आधार की सतह पर स्‍याही की छोटी बूंदों को जो पूर्वनिश्चित सूक्ष्‍म सजावट के विशिष्‍ट डाई रंग होते हैं, प्रक्षेपित कर तैयार किया जाता है। यह वस्‍त्रों के सजावटी महत्त्‍व में वृद्धि करने के लिए रंगाई करने का प्राचीनतम रूप है। यह बंधाई और रंगाई की परम्‍परागत तकनीक है, एक स्‍प्रे यंत्र को स्‍क्रीन पर रंग डालने के लिए प्रयोग किया जाता है और एक आकृति अम्‍बार क्रियान्वित करने के लिए वैद्युत आलेपन किया जाता है। इस तकनीक में ताने और बाने दोनों को बाँधना सम्मिलित है, जहाँ मूल रंग बनाए रखने और बाद में डाई करने की आवश्‍यकता होती है।

कैसे पहुचे :-

लखनऊ में अच्छी तरह से सड़कों और सड़क परिवहन  उत्तर प्रदेश और आसपास के क्षेत्रों के सभी प्रमुख शहरों के लिए नेटवर्क से जोड़ा है. लखनऊ और अन्य प्रमुख शहरों के बीच दूरी हैं: (497km), दिल्ली (363km) आगरा, इलाहाबाद (238 किमी), देहरादून (582km), कानपुर (77km) और वाराणसी (300km).








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