उत्तराखंड     नैनीताल     रूद्रपुर


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

रूद्रपुर समूह के बारे में:-

रूद्रपुर समूह उत्तराखण्‍ राज्‍य में नैनीताल जिला के अर्न्‍तगत आता है.

रूद्रपुर समूह 210 से अधिक कलाकारों तथा 21 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

जरी, जरदोजी:-

 धातु तारों से की गई कशीदाकारी कलाबत्तू कहलाती है और जरी बनती है. जरी का मुख्‍य उत्‍पादन केंद्र उत्तरप्रदेश में वाराणसी है. यहां धातु सिल्‍लीयों को पिघलाकर छड़ें बनाई जाती हैं जिन्‍हें पासा कहा जाता है जिनसे उपचारित करने के बाद पीटकर लंबाईयां प्राप्‍त की जाती है. इसे तब तारें बनाने के लिए छिद्रयुक्‍त स्‍टील प्‍लेटों में से खींचा जाता है, इसके पश्‍चात् इसे रबड़ एवं हीरे की डाईयों के द्वारा पतला करने के लिए तारकशी प्रक्रिया की जाती है. अंतिम चरण बादला कहलाता है जहां तार को कसाब या कलाबत्तू बनाए जाने के लिए समतल करके सिल्‍क या सूती धागे के साथ बंटाई की जाती है. इसमें एक समान एकरूपता, तन्‍यता, मृदुता तथा नलिकारूप होता है. कसाब वास्‍तविक चॉंदी/स्‍वर्ण के साथ-साथ विलेपित चाँदी/स्‍वर्ण के रूप में या प्रतिकृति जिसमें उत्‍पाद को कम खर्चीला बनाने के लिए तॉंबे के आधार पर चॉंदी या स्‍वर्ण रंग का विलेपन किया जाता है, का स्‍थानापन्‍न हो सकता है.

जरी धागा वृहत्तर रूप से बुनाई में परंतु अधिक विशिष्‍ट रूप से कशीदाकारी में प्रयोग किया जाता है. अधिक जटिल नमूने के लिए गिजाई या एक पतली, कठोर तार प्रयोग की जाती है; सितारा, धातु की एक तारे के समान छोटी आकृति, को फूल-पत्तियों के विन्‍यास बनाने में प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार की कशीदाकारी सलमा-सितारा कहलाती है. मोटा कलाबत्तू एक गूंथा हुआ स्‍वर्ण धागा है जो किनारों के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि पतली किस्‍म पर्सों या बटुओं की खींचने की डोर एवं झब्‍बों/फूंदनों, कंठहारों तथा डोरियों के सिरों में प्रयोग की जाती है. तिकोरा जटिल डिजाइनों के लिए एक सर्पिल मुड़ा हुआ स्‍वर्ण धागा है. हलके जरी धागे को कोरा कहा जाता है तथा अधिक चमकीला चिकना कहलाता है. वह उपकरण जो कशीदाकारी के लिए प्रयोग किया जाता है लकड़ी का चौकोर ढांचा होता है कारचोब कहते हैं तथा किनारी सिलने के लिए प्रयुक्‍त लकड़ी का पाया थापा कहलाता है. नीचे विभिन्‍न प्रकार के जरी कार्यों की सूची दी गई है.

जरदोजी: यह एक भारी और अधिक भव्‍य कशीदाकारी कार्य है जिसमें विभिन्‍न प्रकार के स्‍वर्ण तार, सितारे, मनके, मोती, तार और गोटा प्रयोग किया जाता है. इसका प्रयोग वैवाहिक पहनावे, भारी कोटों, गद्दीयां, पर्दे, चंदोवे, पशु साज-समान, थैले, पर्स, बेल्‍ट तथा जूतियां सजाने-संवारने में होता है. वह सामग्री जिस पर इस प्रकार की कशीदाकारी की जाती है प्राय: भारी सिल्‍क, मखमल तथा साटिन होती है. अन्‍य के साथ-साथ सलमा-सितारे, गिजाई, बादला, कटोरी तथा मोती सिलाई के रूप होते हैं. मुख्‍य केंद्र दिल्‍ली, जयपुर, बनारस, आगरा तथा सूरत में हैं. वृद्ध युवाओं की सिखाते हैं और इस प्रकार यह कला पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहती है.

कामदानी: यह एक हल्‍का सिलाई-कढ़ाई कार्य है जो हल्‍की सामग्री जैसे स्‍कार्फ, बुर्के, तथा टोपियों पर की जाती है. साधारण धागा प्रयोग किया जाता है तथा तार को सिलाई के साथ नीचे दबा दिया जाता है जो साटिन सिलाई प्रभाव उत्‍पन्‍न करता है. इस प्रकार उत्‍पन्‍न प्रभाव चमकदार होता है और हजारा बत्ती (हजारों बत्तियां) कहलाता है.

मीना कार्य: इसे ऐसा इसकी मीनाकारी से समानता होने के कारण कहा जाता है. कशीदाकारी स्‍वर्ण में की जाती है.

कतोकी बेल: यह दृढ़ मोटे कपड़े से निर्मित बॉर्डर का नमूना है तथा संपूर्ण सतह सीपियों की किनारियों से भरी जाती है. इस बॉर्डर तकनीक का एक भिन्‍न रूप जाली पर किनारी निर्मित करना तथा जरी की कढ़ाई तथा सितारों से भराई करना है.

मकैश: यह प्राचीनतम शैली है और बादला या चॉंदी की तारों के साथ की जाती है. तार स्‍वयं सामग्री का छेदन करते हुए सिलाई पूर्ण करने के लिए सूई के रूप में कार्य करती है.

टीला और मरोरी काम:यह एक तरह की कसीदाकारी है जिसमे सोने के धागो को सूइ की मदद से उपरी तरफ टांका लिया जाता है।

गोटा काम:पेटर्नमें बुनावट की विविधताए बनाने के लिए बुनी हुइ सोने की किनारी को अलग अलग आकारो में काटा जाता है। जयपुर में मटीरीयल और सारी की किनारी को पंछी, जानवर और इन्सानो के आकारोमें काटा जाता है, कपडे के साथ जोडा जाता है और सोने और चांदी के तारो से ढक दिता जाता है; जिसके आसपास रंगीन सिल्क होता है।यह काम तामचीनी करने से मिलता जुलता है।

किनारी काम:थॊडी सी विभीन्नता किनारी काम मे पाइ जती है जिस मे सिर्फ धार पे गुच्छे के रुप में सजावट कि जाती है।इसको ज्यादातर मुस्लीम समाज के आदमि और औरतो के द्रारा किया जाता है।

कच्ची सामग्री:-

बुनियादी चीजवस्तुए: सिल्क.जरी,कपास,पोलीस्टर,जेकर्ड करघा; दोरी (धागा ८० नं/६० नं;पक्का यार्न (धागा) ३० नं।

सजावट की चीजवस्तुए:मोए के पंख

रंग करने की चीजवस्तुए: (बुकानी) (रंग का पावडर)

प्रक्रिया:-

पेटर्न की जिस डिजाइन को बुनना है उसे कागज पे बनाया जाता है।रस्सी और बाना जाली मे से टिळि की मदद से डिजाइन को कोटन यार्न पे ली जाती है।इस आविष्कार को जाला कहते है, जो पूरी ग्राफिक पेटर्न को सामिल करती है।यह जाला करघा के उपरी भाग मे टांगा जाता है और रस्सी के धागे से बांधा जाता है सिर्फ नियंत्रित रस्सी धागो को डिजाइन के अनुसार लिया जाता है। झरी/सिल्क के अतिरिक्त रस्सी धागो को उचे किये गये भागो पे दाखिल किया जाता है,कतार के बाद कतार,चलती रस्सी के धागे के साथ । जाला साधन की जगह पंच कार्डसन ने ले ली है,जेकार्ड करघा इस जरीकाम की सजावट के लिए.तिबेतीयन बुना हुआ चढावा ग्यासार बहुत ही बारीकी से बुना होता है।सिल्क/जरी के धागो के अलावा साटन बुनाइमें पूरी सतह को पंखसे बनाने के लिए मोर के पंखो का इस्तेमाल किया जाता है।मोतीयो को गाढा लाल,पिला और सफेद साटन की पृष्ठभूमि मे सोने और चांदी की जरी का उपयोग करके बुना जाता है।

तकनीकियाँ:-

सजाना (एप्लीके) और काटना तकनिक

आम तरीके से,अच्छा सफेद तारवाला कपास चीकन कसीदाकारी के लिए इस्तमाल होता है।कुछ टांको को कपडे के आगे से लिया जाता है,कुछ के पीछे से।शैला पेइने ने किताब चीकन कसाबाकारी मे पाया है की छ बुनियादी टांके है,जिनको टांको की श्रेणी के संयोजनो के साथ फुलो और पत्तो को उत्कीर्ण करने के लिए इस्तमाल होता है। खेंचा हुआ काम (चीकन वर्क मे हिन्दी शब्द जाली से जाना जाता है जिसका अर्थ है खिडकी मे डाली हुइ जाली ,जो बाहर से दिखाइ देती है मगर अंदर से नहि) और खटाउ (सजाना (एप्लीके) और काटना तकनिक, जहा कपडे का एक टुकडे को दूसरे टुकडे पे घेर लिया जाता है और उसके बाद काटा जाता है) रंगपटल को पूरा करता है।

कैसे पहुचे :-

हवाइ मार्ग से:-

राजधानी देहरादून का जौली ग्रांट विमानपत्तन नामक अपना घेरलू विमानपत्तन है. शहर के बाहरी छोर पर स्थित विमानपत्तन 25 कि.मी. दूरी पर अवस्थित है. दिल्‍ली से आने तथा जाने के लिए दैनिक उड़ानें संचालित की जाती हैं, जो निकटतम अंतर्राष्‍ट्रीय विमानपत्तन है. दिल्ली विमानसेवा द्वारा सभी प्रमुख भारतीय शहरों जैसे: मुम्‍बई, चैन्‍नई, बैंगलोर, हैदराबाद, कोलकात्ता आदि से जुड़ा हुआ है.

सडक के द्रारा:-

राष्‍ट्रीय राजमार्गों, राज्‍य राजमार्गों तथा वाहन चलाने योग्‍य पक्‍की सड़कों का सघन जाल देहरादून तक उत्तरी भारत के किसी भी भाग से पहुँच को सुगम बनाता है. देहरदून से सड़क संपर्क से जुड़े कुछ प्रमुख नगर हैं: आगरा(381 किमी), जयपुर (493किमी), लखनऊ(582 किमी) हैं.

रेल के द्रारा:-

भारत के उत्तरी भाग में देहरादून स्‍वयं एक प्रमुख रेलवे स्‍टेशन है. भारत में लगभग सभी प्रमुख महानगर जैसे: दिल्‍ली, मुम्‍बई, कोलकात्ता से दिल्‍ली के लिए सीधी ट्रेनें हैं. अनेक महत्तवपूर्ण ट्रेनें शहर को वाराणसी, लखनऊ तथा मसूरी एवं अन्‍य से जोड़ती हैं.








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