इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं| बारही समूह के बारे में:- बारही समूह झारखण्ड राज्य में हजारीबाग जिला के अर्न्तगत आता है. बारही समूह 302 से अधिक कलाकारों तथा 21 एसएचजी आकार सहित सशक्त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्त कर रहा है. बेंत और बास:- छोटा नागपुर पठार क्षेत्र बॉंस वृक्षों से सघन रूप से आच्छादित है और क्षेत्र के आदिवासी उत्कृष्ट टोकरियां, बेंत उत्पादों एवं अन्य उपयोगी वस्तुएं निर्मित करने में दक्ष हैं. इस क्षेत्र की उष्णकटिबन्धिय जलवायु में बॉंस शिल्प की परंपरा रही है तथा कच्ची सामग्री की प्रचुर उपलब्धता नें स्थानीय लोगों को इस प्राचीन शिल्प में प्रवीणता प्राप्त करने के योग्य बनाया. बेंत एवं बॉंस के अनेक उपयोग होते हैं. मोटे बॉंस तनें भवनों में प्रयुक्त होते हैं, कटे-बाँस जल-संग्राहक के रूप में प्रयुक्त होते हैं. अन्य प्रयोग फर्शों के लिए बुनी हुई चटाईयां, टोकरियां, आदि हैं. इस क्षेत्र का बेंत और बाँस फर्नीचर उत्कृष्ट होता है. बांस की उत्पादने प्रमाण के रुपमे झारखण्ड मे हर जगह पाई जाती है।बांस की बास्कीटे के अनगिनत प्रकार और आकार होते है,उसके इस्तएमाल के अनुसार अलग अलग की उसका क्या करना है।आम तौर से घर के आदमी बांस की बास्कीटे बुनती है।हरेक जिले के पास उसकी खुद की एक अलग शैली होती है।सामान्य तरीके से बेलनाकार बास्कीटे लाने-जाने के लिए इस्तेमाल होती है और चौकोर या गोल बेठकवाले संग्रह करने के लिए इस्तेमाल होते है।नमूने के तौर पे है अल्हाबाद का उतरप्रदेश बांस बास्केट।इसमे चौकोरा बेठक होती है और जो अंदर की ओर होती है जिसके कारण चौकोर के कोने आधार के रुप में काम करते है और इसका मुंह बडा होता है।इसका सुपारी रखने के लिए इस्तेमाल होता है।बोडो बांस की बास्केट मोडने की मदद से बनाइ जाती है,जिसका इस्तेमाल गला और मुंह का आकार बनाने के लिए होता है।गले से ले के नीचे तक बदामी कागज का शंकु बनाया जाता है और बास्केट मे रखा जाता है जिससे उसकी टोच नीचे तक पहुंचे।अंदर की और रेत डाली जाती है जिससे शंकु का आकार बना रहे और बुनाइ मे शंकु आकार मे हि की जाती है। गुडिया और खिलोने भी बेंत और बांस से बनाये जाते है। इन्सान और जानवरो की आकृतिओ के अलावा शूटगन खिलोना और संगीत के साधन बनाये जाते है।बंस से बना छाता का हाथा विशेषता होता है और इसमे पतो,विसर्पी पौधे,पौधे,रींग और क्रोस की डिजाइन उसपे रेखीत होती है।बांस की खास विशेषता जो मूली से जाना जाती है उसका हाथे के लिए इस्तेमाल होता है। कच्ची सामग्री:- झारखण्ड कच्ची सामग्री मे अमीर होने की बजह से उसके पास सुंदर उत्पादने है।पर्वतीय और मेदानी लोगो की हरेक की अपनी शैली होती है।बास्केट बनाने के अलावा बेंत और बांस का फर्नीचर भी बनता है,बराबरी मे देखे तो ज्यादा आधुनिक शुरुआत।बेंत और बांस से बनी चीजे इन्सान के सर्जन मे से सबसे पुरानी है,किया जाता है तिनके को तिनके के साथ जोडके और पतो को एकदूसरे के साथ जोडना कम से कम साधनो का इस्तेमाल करके ।धार्मिक हेतुओ के लिए इसको शुध्ध माना जाता है।उतरप्रदेश में उद्योग कौशल्य के सबसे बहेतरीन नमूने मे से एक है उसका बेंत काम।कच्ची सामग्री बहुत सारी मात्रा में उसके हरे-भरे जंगलो मे पाइ जाती है,उद्योग को ताकत और आहार प्रदान करती है। प्रक्रिया:- बेंत और बांस का पूरा तना हेक्सो से काटा जाता है और बीलहूक से अलग अलग मापों में सीधा काटा जाता है।बांस को धीमी आग में तपाता जाता है,आम तौर से केरोसीन के दीये से फ्लेक्सीबीलीटी की बजह से।चीजो को दो अलग अलग रुपो मे बनाई जाती है: बास्केट के लिए कोइल की आकारमे,और चटाइ बुनने के लिए।कोइल बास्केट बनाने में मध्य हिस्से के आसपास बेंत को कोइल करने के द्रारा बास्केट का बुनियाद पहले बानाया जाता है।इसको स्प्रिंग आकारमें बनाया जाता है और धीरे धीरे चोडाइ बढती है जब तक इच्छीत उंचाइ पा न ले।कोइल को एकदूसरे के साथ सिलाइ की पट्टीओ से जोडा जाता है जिनको दो प्रकार से लगाया जा सकता है:बुनियादी कोइल के नये हिस्से के उपर हरेक टांको को पसार किया जाता है।आठ की आकृति बनाइ जाती है मतलब की टांका पहले की कोइल के पीछे उचाइ की और,उपर और नीचे और नै कोइल कि दाइ तरफ जाता है।इस तरह पट्टीओ से कोइल सामग्री कि सिलाइ की जाती है और बास्केट बनाइ जाती है।बास्केट की सजावट दोरी,कागज और कोषो को पा के की जाती है। काटने के साधन जिसे डाउ कहा जाता है उसकी मदद से कारीगर बांस को इच्छीत माप की लंबाइमें काटता है।अलग अलग प्रकार के चाकूओ की मदद से बांस की लंबाइ मोटाइ के अनुसार काटी जाती है।इस तरह से तैयार सामग्री को चीज या फर्नीचर की फ्रेम को बनाने के लिए इस्तेमाल होता है जब की पेन्सिल बेंत का डिजाइन बनाने और बांधने के हेतु इस्तेमाल होता है। बेंत को इच्छीत रुप मे फर्नीचर या चीज बनाने के लिए ब्लो लेम्प से गर्म करने की प्रक्रिया के द्रारा मोडा जाता है।दोनो तरफ के अंत को चिपकानेवाले पदार्थ और कील से जोडा जाता है और जोडॊ को पेन्सिल बेंत की पट्टीओ से बांधा जाता है।बेंत और बांस में पैदा हुइ चीजो को सेन्ड पेपर से साफ की जाती है और वार्निश से पोलिश की जाती है। बेंत और बांस की चीजे बनाने मे सामील है हेक्सो से पूरे तने को काटना और बिलहूक का इस्तेमाल करके अलग अलग मापो मे उनके चीरना।चीराइ गाढी जमा हुइ फाइबर की लंबाइ के साथ सीधी ही की जाती है,और आम तौर से सरल प्रक्रिया नहि है,और अंदर के मावे मे सिर्फ जरुरी मात्रा में नमी होनी चाहिए।बेंत को गर्म करने के लिए केरोसीन लेम्प का इस्तेमाल होता है उसको आकार मे मोडा जाए उससे पहले। तकनीकियाँ:- बेंत की उत्पादने बनाने में कंइ चरण पसार करने होते है,शुरू होता है जंगलो से कच्ची सामग्री को इकठठा करना।समतल सतह पाने के लिए कच्ची बेंत के उपली हिस्से को खुरचा जाता है।लबे बेंत की लकडीयो को छोटे टुकडो में काटी जाती है उसके बाद पतली पट्टीया पाने के लिए होता है बेंत को चीरना ।बेंत को आगे भी चीरा जा सकता है ,उसको जितना जरूरी हो उतना पतला बनान्रे के लिए।चीरे हुए बेंत को अब ब्लो लेम्प का इस्तेमाल करके मोडा जाता है जो सतह को थोडा जला सकता है;उसको सेन्डपेपर के द्रारा घीस के दूर किया जाता है।उसके बाद,चीज की डीजाइन जो उसमे से बन सकती है उसके आधार पर बेंत को बुना जाता है।खतम होने के बाद आखरी ट्च दीया जाता है,उत्पादन को वार्निस के स्तर से ढंका जाता है उसको बाजार में भेजने से पहले। कैसे पहुंचे:- निकटतम विमानपत्तन रॉंची (91 कि.मी.) कलकत्ता, पटना, लखनऊ तथा दिल्ली से इंडियन एयरलाइंस की नियमित सेवाओं से जुड़ा हुआ है. निकटतम रेलवेस्टेशन कोडरमा है जो 59 कि.मी. दूरी पर है या वैकल्पिक रूप से हावड़ा-दिल्ली मुख्य तन्त्री लाईन पर स्थित हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन (67 कि.मी.) से राष्ट्रीय पार्क जा सकते हैं. हजारीबाग कस्बा सड़क द्वारा रॉंची 91 कि.मी. धनबाद 128कि.मी. गया 130 कि.मी. पटना 235 कि.मी. डाल्टनगंज 198 कि.मी., कलकत्ता(वाया आसनसोल-गोविन्दपुर-बारही) 434 कि.मी. से जुड़ा हुआ है. हजारीबाग राष्ट्रीय पार्क हजारीबाग कस्बे से 19 कि.मी. दूर है. नियमित बस सेवाएं कस्बे को कोडरमा, हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन, पटना, गया, रॉंची, धनबाद, डाल्टनगंज एवं अन्य निकटवर्ती स्थानों से जोड़ती है.