उत्तर प्रदेश     सुल्तानपुर     चिलकाना के बारे मे 5 गांव


 

इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगे क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें सामान्य अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

 

चिलकाना के बारे मे 5 गांव  समूह के बारे में:-

 

चिलकाना के बारे मे 5 गांव  समूह उतरप्रदेश राज्य के सुल्तानपुर जिले में पडता है।

 

चिलकाना के बारे मे 5 गांव  समूह 1000 से ज्यादा कारीगरो और 100  SHG बना पाये है जो मजबुत कार्यबल देता है। यह संघठन का संवेग दिन-प्रतिदिन बढ रहा है।

 

काष्‍ठ नक्काशीकार्य :-

 

शहरानपुर छेद बनाइ हुइ फिते जैसे हस्तकौशलमें जाना माना है।चीजे सीसम,दूधी और साल से बानाइ जाती है।लकडे के नक्काशी कारीगर वह जो चीजे बनाते है उनपे जादु डाल देते है।लकडे का नक्काशी करने का काम एक पीढी दूसरी पीढी को सीखाती आ रही है।महेराब,जैल और अंगूरलता रुपांकन कौशल्य के साथ फर्नीचर की डिजाइन बनाइ जाती है।नक्काशी करनेवाले उनकी कल्पनाओ को इस चीज पे नक्काशी करते है और कइ बार नक्काशी को आबनूस लकडे में पथ्थर जडाइ करके सुंदर बनाया जाता है।रंगो का संयोजन बहुत ही आकर्षक बनाया जाता है और हरेक चीज को बहुत ही मनोहर तरीके से बनाया जाता है।

 

 

आज भी हरेक घर का मुख्य प्रवेशद्रार ,जिसे पवित्र देहली माना जाता है,उसमें हिन्दु देवताओ और शुभ रुपाकंन जैसे की हंस/पौराणिक हंस, पदमा/कमल, पूर्णकुंभ/अक्सयपात्र, कामधेनु फूलो की पेटर्नवाली रुपांकने वाला  लकडे का पेचीला नक्काशीकाम होता है।

 

 

अन्य नक्काशी की हुइ चीजो मे सामिल है मंदिर और देवताए,शादी के लिए  नक्काशा हुआ नीचा तिपाइ,देवताओ के लिए नक्काशे हुए पंखे,उपजाउपन जोडे और क्रियाकांड के अलग अलग प्रकार के छोटे बर्तन। देवता की नक्काशा हुइ पतली पट्टी को एक मीटर लंबे खंभे की किसी भी एक तरफ लगाया जाता है वह दूसरी क्रियाकांडॊ की चीजे होती है।इन चीजो को कावडी कहते है और व्यक्ति के कंधे पे ले जाया जाता है,भगवान मुर्गा अथवा कार्तिकेय को दी गइ प्रतिग्या पूरी करने के लिए।लकडे से बने हुए घरेलू रसोइ के साधन जैसे की ग्राइन्डर्स,वेजीटेबल कटर,परोसने के लिए इस्तमाल करने का चमचा ये सब वह चीजे है जिनको दहेज मे दी जाती है।

 

लेथ से बनाइ हुइ और प्रलाक्स खिलोने और खरीदने मे समर्थ हो एसी किंमते पर पूरे राज्यभर में लोकप्रिय है।नक्काशे हुए लकडे के खिलोने,ढींगलीया और हाथी को कारीगरो के कौशल्य को दर्शाते हुए बनाया जाता है।

 

काष्‍ठ नक्काशीकार्य की कच्ची सामग्री:-

 

बुनियादी सामग्री:भुरकुल और गुलर का लकडा,आम का लकडा,हरा बांस,शीशम का लकडा

रंगकाम की सामग्री:अल्टा,हल्दी

 

बुनियादी सामग्री:दूधिया का लकडा,लाक्सा, लाक्सा लकडी,ओइल,पुराना कपडा, रंगीन कागज

 

बुनियादी सामग्री:कपडे के बचे हुए टुकडे,बांस,चिथडे,कागज

 

रंग्काम कि सामग्री:डाइ कलर

 

बुनियादी सामग्री:पुन्की लकडा,इमली के बी, चुना सरेस, ब्रश,वोटर कलर,ओइल कलर,लाल सन्देशर का लकडा

 

 

बुनियादी सामग्री:कपडा,रंग, कच्चे माल के लिए उपयोगी नहि होने वाली सामग्री,रंगीन कागज,मीट्टी

 

काष्‍ठ नक्काशीकार्य की प्रक्रिया:-

 

जो आकार बनाना हो उसके कद का लकडा बडे लकडे के टुकडे मे से काटा जाता है।टुकडे को साफ और चिकना बनाया जाता है।जो खिलोना बनाना है उसकी डिजाइन इस टुकडे पे बना दी जाती है।ज्यादा लकडे को डिजाइन के अनुसार काट दिया जाता है। छेनी पे हथोडे के द्रारा धीरे से ठोका जाता है, जिसको वहा रखा जाता है जिसे आकार देना होता हे।जिसे रेती से चिकना बनाया जाता है और रंग दिया जाता है।शरीर के अलग अलग हिस्सो को रंग करने के साथ रंगकाम शुरु होता है।बाद में किसी निश्र्चित डिजाइनवाले ड्रेसीस को अच्छा रंग करके अंकित कर दिया जाता है। मुखमुद्रा को आखिर मे बनाया जाता है। सुका (तोता) वह लकडे का खिलोना है जिसे शाडी के मंडप पे लगाया जाता है।मोसाला (बीच का भाग) ,चरखी और सुका(तोता) वही प्रक्रिया से बनाया जाता है।इन सबको बांस की खिली से जोडा जाता है।शादी के खंभे को पीले रंग(हल्दी),लाल (अल्टा) और हरे रंगो से रंगा जाता है।

 

लाख करने का काम लाख की लकडी को घुमती चीज के सामने दबा के किया जाता है।उसी समय ओइल भी लगाया जाता है बहेतरीन पोलिश देने के लिए। फूलोवाले केकटस के प्रकार के पतो को पोलिश करने के लिए इस्तमाल किया जाता है।चीज या तो एक ही रंग में होती है या अलग अलग रंगो के पट्टे में होती है।पेचीदा डिजाइन और रंगो की परियोजना को लाख की टर्नरी का उपयोग करके और बहुविध तकनिकीयां का प्रयोग करके प्रभावशाली बनाया जाता है। जजयपुर में खिलोनो को पुराने कपडे को नया रंग करके और बिनउपयोगी चीजो को अंदर भरके बनाया जाता है। जब इनको खुशी से रंगीन कागज और पन्नी लगा के सजाया जाता है तो वे पूरी जिंदा दिखती है खास करके उनके अभिव्यंजक चहेरे के साथ।

 

चिथडे खी गुडिया को कपडे के टुकडो से बनाइ जाती है खास करके फेंक दीए गए।इनको कडी महेनत से इकठ्ठे किये जाते है और अलग अलग तरीके के रंगो से रंगा जाता है ताकि अलग अलग तरह की परियोजनाए बाना सके।आंख और मुंह को काली रेखा से बताया जाता है।रानी ढींगली के किस्से में कपडॊ और शरीर को पूरी तरह से सजाया जाता है।

 

काष्‍ठ नक्काशी कार्य की तकनीकें :-

 

हरेक लकडे का टुकडा जीसे चीज बनाने के लिये काटा जाता है उसमेसे पूरी नमी को निकालने के लिये धीमी आंच पे गर्म करने कि प्रक्रिया के आधीन होती है।हरेक अंग को अलग से नक्काशा जाता है और इमली के दानो की चिपकानेवाळी  पेस्ट से शरीर के साथ जोडा जाता है,और बादमें चुने के सरेस के कोटिंग मे से निकाला जाता है।रंगो से रंगकाम करने के लिए बकरे के बालो से बनी पिंछीयो से बहुत ही सहीपन से किया जाता है।पानी और तैल दोनो रंगो का इस्तेमाल होता है।लांख का काम खराद,हाथ और यंत्र संचालित रुप से किया जाता है।पतली और नाजुक चीजो को मोडने के लिए,हाथ का खराद सही माना जाता है।लाख टर्नरी पध्धति में,लाख को शुष्क मोड में लगाया जाता है वह लाख की लकडी होती है उसको लकडे के बर्तन के उपर दबाया जाता है लाख का काम करने के लिए।जब वह दूसरा घूमता रहता है तब बहुत थोडी मात्रा मे दी हुइ गर्मी लाख को पोचा बनाती है, रंगीन लकडी बनाती है।लाख के काम के खिलोने इस तरह बनाये जाते है।इसको नोंधनीय कौशल्य के साथ कारीगर लकडी का इस्तमाल करता है जहा बहुत सारे रंग लगे हुए होते है।कुछ लाख काम करे हुए टुकडो को पींछी की मदद से रंगा जाता है।

 

कैसे पहुंचे:-

 

निकटतम विमान पत्तन आमहाट है जो शहर से 5 कि‍मी की दूरी पर है। सुल्तानपुर रेलवे द्वारा भली भांति जुड़ा हुआ है। मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों की सीधी सुविधाएं उपलब्ध हैं जो शहर को दिल्ली, मुंबई, हावड़ा और पड़ोसी राज्यों के अन्य स्थानों के साथ जोडंती है। यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग सं. 56 पर अवस्थित है और प्रमुख शहरों के साथ सड़क माध्यम से जुड़ा हुआ है। कुछ स्थानों की दूरियां हैं : उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से 141 किमी और धार्मिक शहर वाराणसी से लगभग 180 किमी. राज्य राजमार्ग इस शहर को इलाहाबाद,96 किमी से जोड़ता है ।








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