बिहार     कटिहार     कटिहार


इकाइयों के ऐसे भौगोलिक जमाव (नगर/शहर/कुछ सटे गांव और उनसे लगते हुए क्षेत्र) को क्लस्टर (जमघट) कहते हैं, जो लगभग एक ही तरह के उत्पाद तैयार करते हैं तथा जिन्हें समान अवसरों और खतरों का सामना करना पड़ता है| हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वाली पारिवारिक इकाइयों के भौगोलिक जमाव (जो अधिकांशतः गांवों/कस्बों में पाया जाता है) को आर्टिशन क्लस्टर कहते हैं| किसी क्लस्टर विशेष में, ऐसे उत्पादक प्रायः किसी खास समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, जो पीढियों से इन उत्पादों को तैयार करने के कार्य में लगे होते हैं| दरअसल, कई आर्टिशन क्लस्टर (शिल्पी जमघट) सदियों पुराने हैं|

 

कटिहार समूह के बारे में:-

 

कटिहार समूह  बिहार राज्‍य में कटिहार जिला के अर्न्‍तगत आता है.

कटिहार समूह 120 से अधिक कलाकारों तथा 10 एसएचजी आकार सहित सशक्‍त कार्यबल आधार प्रदान करने में सक्षम है. यह संघटन दिन प्रति दिन पहचान प्राप्‍त कर रहा है.

 

घास, पत्ता, सरकंडे, तथा रेशा:-

 

मूंज विस्‍तृत रूप से ऊपजाई जाने वाली पीले रंग की घास है. इस शिल्‍प में कार्यरत शिल्‍पकर्मी बहुप्रयोजनीय वसतुएं जैसे कप्‍ड़े रखने, सूखे फल वस्‍तुए तथा चपातियां आदि रखने के लिए टोकरियां निर्मित करते हैं. मूंज की कठोरता के कारण बनाई गई वस्‍तुएं टिकाऊ तथा लंबी अवधि तक चलती हैं. आजकल शिल्‍पकर्मी ग्राहकों की पसन्‍द को ध्‍यान में रखकर भड़कीली टोकरियां बनाते हैं. नौकाएं तथा उलण्‍डी भी तैयार की जाती है जिसमें अत्‍यधि श्रम एवं दक्ष कला की आवश्‍यकता होती है.

आजकल सजावटी वस्‍तुओं जैसे मुखौटे, थैले, दीपदान, बटुए आदि के साथ-साथ लोकप्रिय नारियल आभूषणों की अत्‍यधिक मॉंग है. एशिया विशेषकर भारत, बॉंग्‍लादेश तथा चीन का उप- उष्णकटिबन्‍धीय क्षेत्र जूट के लिए अति प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र में पटसन-शिल्‍प बहुत प्रसिद्ध है तथा इसे एक सरकंडे के समान पौधे से प्राप्‍त किया जाता है. पश्चिम बंगाल की नम एवं उष्‍ण जलवायु तथा वर्षा की अधिकता इस पौधे के लिए बहुत अनुकूल है. यह पौधा 3-4 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है तथा पकने में छह माह तक समय लेता है. जूट दूसरा सर्वाधिक प्रसिद्ध पौधे से प्राप्‍त प्राकृतिक रेशा है जो प्रचुरता में उपलब्‍ध है.

 

एक बार जब पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है तो इसे भूमि के अति निकट से काटा जाता है तथा भूमि पर एक या दो दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है जिससे पत्ते झड़ जाते हैं. रेशा अलग करने के लिए पौधे को जल सोखने के लिए डुबोया जाता है. यह प्रक्रिया सड़ाने के रूप में जानी जाती है. इस प्रकार पृथक किए गए जूट को सुखाया जाता है और विभिन्‍न आकार प्रदान किए जाते हैं. रेशों की धागों में बंटाई की जाती है. कभी-कभार धागों की वस्‍त्र एवं कालीन बनाने के लिए बुनाई की जाती है. साफ रेशों, धागों, तथा अवशेषों सभी का प्रयोग शिल्‍प उत्‍पाद जैसे थैले, गलीचे, कालीन, लटकन, जूते, कोस्‍टर, आभूषण, सजावटी वस्‍तुएं आदि निर्मित करने के लिए किया जाता है. कुछ अति उच्‍च गुणवत्ता के जूट का प्रयोग सज्‍जा सामग्री तथा परिधान बनाने में भी किया जाता है.  

 

कच्ची सामग्री:-

 

बिहार के गांव खजूर ,नारीयेल,ताड,पल्मयरा के पेड से भरे हुए है।बास्केट और संबंधित उत्पादने बनाने के लिए खजूर कच्ची सामग्री का अहम संशाधन है।अन्य कच्ची सामग्री जैसे की बांस,बेंत, घास,रेसे और नरकट का भी बास्केट,छत,रस्सा,चट्टाइ और काफी अन्य चीजे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

 

प्रक्रिया:-

 

पटसन रेशा पटसन पौधे के तना और छाल (बाहरी चमडी) से मिलता है।रेसो को पहले सडन फेला के अलग किया जाता है।सडन कि प्रक्रिया में सामिल है पटसन के तनो की एक भारी बनाना और उनको कम,बह्ते पानी मे डूबोना।दो तरह की सडन की जाती है:तना और छाल ।सडन की प्रक्रिया के बाद पट्टी बनाना शुरू होता है।औरते और बच्चे सामान्य रुप से यह काम करते है।पट्टीया बनाने की प्रक्रिया में रेशेदार तत्व को खुरचा जाता है,बाद में कामदार जुट जाते है और पटसन तने से रेसो को निकालते है।

 

पटसन बेगो का फेशन बेग और प्रमोशनल बेग बनाने के लिए इस्तेमाल होता है।पटसन का इको-फ्रेन्डली लक्सण इसको सामूहिक भेट देने की खातिर श्रेष्ठ बनाता है।

 

पटसन की फर्श आवरण के लिए बुनी हुइ और गुच्छेदार और ढेर कि हुइ कार्पेट का इस्तेमाल किया जाता है।पटसन चटाइया और 5/6 चौडाइ की  और अवरित लंबाइ की चटाइया भारत के दक्सिणी भाग में बडी आसानी से बुनी जाती है,मजबुत और फेन्सी रंगो मे और अलग अलग बुनाइयोमे जैसे की बौकले,पानामा,हेरींगबोन इत्यादि।पटसन चटाइ और गलीचा पावर लूम और हाथ के लूम दोनो से,बडी मात्रा मे केराला,भारत मे से बनाया जाता है।पारंपारीक शेतरंजी चटाइ घर के सजावट के लिए बहुत हि लोकप्रिय हो रहि है।पटसन बिना बुनाइ के और घटको का अन्डरले , लीनोलीयम,सबस्ट्रेट और सभी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।इस तरह पटसन सबसे ज्यादा वातावरणीय दोस्ती वाला रेसा है जो शुरु होता है बीज से और खत्म होता है रेसे मे,क्योंकि खतम हुए रेशा को एक से ज्यादा बार रीसाइक्ल किया जा सकता है।

 

तकनीकियाँ:-

 

व्यवाहारीक कोर्ष है आधुनिक तकनिक का परिचय कराना और कौशल्य को बढाना और कामदार को उसकी उत्पादकता और उसकी आमदनी बढाने के योग्य इस तरह बनाना की वो अपने जीवन की बुनियादी जरुरतो को पूरा कर शके और बहुत हि कम समय में गरीबाइ के चुंगल मे से बाहर आ शके।

 

कैसे पहुचे :-

 

जिला अच्छी तरह से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है. कटिहार जिले का एक महत्वपूर्ण रेलवे जंक्शन है. प्लाई नई दिल्ली, जम्मू, अमृतसर, पटना, सिअल्दः, दादर, बरौनी, गुवाहाटी, न्यू जलपाईगुड़ी, मालदह, जोगबनी और अन्य सभी प्रमुख स्टेशनों से सीधे तक.

 

 








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